सिंधु घाटी सभ्यता का कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिला है। सिर्फ अवशेषों के आधार पर ही धारणा बनाई है। इस लेख में मुअनजो - दड़ो के बारे में जो धारणा व्यक्त की गई है। क्या आपके मन में इससे कोई भिन्न धारणा या भाव भी पैदा होता है? इन संभावनाओं पर कक्षा में समूह - चर्चा करें।
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सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में जो भी आज हमारे सामने साक्ष्य हैं वह सभी उष्ण, अनजौ-दहो और कई दूसरे क्षेत्रों की खुदाई में मिले अवशेषों के आधार पर हैं। आपके जानकारी के लिए बता दूं कि यहां नगर-योजना, घर, खेती, काला और दूजा के साथ कई अन्य चीजों के अवशेष देखने को मिले हैं और इसी सभी के आधार पर यह माना गया है कि यहां की सभ्यता बहुत ही विकसित थी। आप जब सभी अवशेषों को अच्छे से समझने का प्रयास करेंगे तो आपको पता चलेगा कि यहां कोई मरूभूमि मौजूद नहीं थी, कृषि के क्षेत्र में भी सिंधु घाटी बहुत ही विकसित था, पशुपालन और व्यापार में भी यह घाटी विकसित था।
मोहनजोदड़ो के बारे में मेरी धारणा निम्नलिखित है
1- सिंधु घाटी क्षेत्र से जो लिपि देखने को मिली है (यानी जो मिली) वह चित्र लिपि के रूप में है जिसे आज तक कोई पढ़ नहीं सका जो खुद अपने आप में एक रहस्य है।
2- अगर किसी सभ्यता की लिपि नहीं पढ़ी जा सकती है तो उसके अवशेष ही उसके सभ्यता की पहचान होती है। इतनी पुरानी सभ्यता के सभी चिन्ह सुरक्षित नहीं मौजूद रह सकते इससे यह साफ पता चलता है कि इस क्षेत्र का जलवायु और इसके मजबूत निर्माण काफी बेहतरीन थे ,जिसके कारण आज भी कई अवशेष सुरक्षित मौजूद हैं और इसी के आधार पर इसकी कल्पना की जाती है।