Hindi, asked by pujithap2006, 8 months ago

सबके मना करने पर भी लेखिका ने गिलहरी
के बच्चे की सेवा का दायित्व क्यों ले लिमा
यह उनके चरित्र की किस विशेषता की
इजागर करता है?

Answers

Answered by yogeshparashar452
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Explanation:

सड़क या फिर किसी अन्य स्थान पर आपने कभी न कभी किसी भिखारी को भीख मांगते हुए जरूर देखा होगा। ऐसे में कभी आपने इन भिखारियों को पैसे दिए होंगे और कभी आगे बढ़ गए होंगे। ऐसा होना लाजिमी भी है क्योंकि कभी-कभी हमारे मन में ये विचार आता है कि भला चंद सिक्कों से इन लोगों के जीवन पर क्या फर्क पड़ेगा। दूसरी तरफ कुछ परोपकारी प्रवृत्ति के लोग ये भी सोचते हैं कि ‘काश! हम इतने धनवान होते हैं कि इन लोगों का भला कर सकते, बस इसी विचार में किसी दिन, कुछ बड़ा करने की अभिलाषा रखते हुए उस दिन का इंतजार करते हैं लेकिन इस विचारों से परे पुराणों में दान देने की एक विशेषता बताई गई है, जिसमें व्यक्ति को अपने सामर्थ्य अनुसार थोड़ा ही सही किंतु दान या फिर कोई काम जरूर करना चाहिए, अर्थात जीवन में किए गए छोटे से परोपकार या काम का भी बहुत महत्व है।

जिसे प्रकृति और भगवान द्वारा हमेशा ही सराहा जाता है। ऐसी ही एक कहानी रामायण में मिलती है, जिसमें गिलहरी के छोटे से प्रयास से प्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने गिलहरी प्रजाति को अपना प्रिय जीव बना लिया था। इस कहानी के अनुसार रामसेतु बनाने का कार्य चल रहा था। भगवान राम को काफी देर तक एक ही दिशा में निहारते हुए देख लक्ष्मण ने पूछा ‘भैया क्या देख रहें हैं।’ भगवान राम ने इशारा करते हुए कहा कि ‘वो देखो लक्ष्मण एक गिलहरी बार- बार समुद्र के किनारे जाती है और रेत पर लोटपोट करके रेत को अपने शरीर पर चिपका लेती है। जब रेत उसके शरीर पर चिपक जाती है फिर वह सेतु पर जाकर अपनी सारी रेत सेतु पर झाड़ आती है। वह काफी देर से यही कार्य कर रही है। लक्ष्मण बोले ‘प्रभु वह समुन्द्र में क्रीड़ा का आनंद ले रही है ओर कुछ नहीं’।भगवान राम ने कहा, ‘नहीं लक्ष्मण तुम उस गिलहरी के भाव को समझने का प्रयास करो। चलो आओ! उस गिलहरी से ही पूछ लेते हैं कि वह क्या कर रही है.’ दोनों भाई उस गिलहरी के निकट गए। भगवान राम ने गिलहरी से पूछा कि ‘तुम क्या कर रही हो?’ गिलहरी ने उत्तर दिया कि कुछ नहीं प्रभु बस इस पुण्य कार्य में थोड़ा बहुत योगदान दे रही हूं। भगवान राम को उत्तर देकर गिलहरी फिर से अपने कार्य के लिए जाने लगी, तो भगवान राम उसे टोकते हुए बोले ‘तुम्हारी रेत के कुछ कण डालने से क्या होगा?’ गिलहरी ने कहा ‘प्रभु आप सत्य कह रहे हैं. मैं सृष्टि की इतनी लघु प्राणी होने के कारण इस महान कार्य हेतु कर भी क्या सकती हूं। मेरे कार्य का मूल्यांकन भी क्या होगा परतुं, प्रभु में यह कार्य किसी आकांक्षा से नहीं कर रही। यह कार्य तो राष्ट्र कार्य है, धर्म की अधर्म पर जीत का कार्य है। मनुष्य जितना कार्य कर सके नि:स्वार्थ भाव से राष्ट्रहित का कार्य करना चाहिए। भगवान राम गिलहरी की बात सुनकर भाव विभोर हो उठे। भगवान राम ने उस छोटी सी गिलहरी को अपनी हथेली पर बैठा लिया और उसके शरीर पर प्यार से हाथ फेरने लगे। भगवान राम की अंगुलियों का स्पर्श पाकर गिलहरी की पीठ पर दो धारियां छप गई,जो प्रभु राम के स्नेह के प्रतीक के रूप में मानी जाती है।

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