Samvad lekha in Hindi on baad between two friends
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Dialogue Writing, Samvad Lekhan (संवाद लेखन) - इस लेख में हम संवाद किसे कहते हैं? संवाद-लेखन किसे कहते हैं? अच्छी संवाद-रचना के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए? अच्छे संवाद-लेखन की क्या विशेषताएँ होती है? इन सभी प्रश्नों के द्वारा आप सभी की संवाद-लेखन में होनी वाली परेशानियों को दूर करने का प्रयास करेंगे और अंत में कुछ उदाहरणों के जरिए और अधिक स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे –
दो या दो से अधिक लोगों के बीच होने वाले वार्तालाप या सम्भाषण को संवाद कहते हैं।
दूसरे शब्दों में - संवाद का सामान्य अर्थ बातचीत है। इसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति भाग लेते है। अपने विचारों और भावों को व्यक्त करने के लिए संवाद की सहायता ली जाती है।
संवाद लेखन की परिभाषा
जब दो या दो से अधिक लोगों के बीच होने वाले वार्तालाप को लिखा जाता है तब वह संवाद लेखन कहलाता है। संवाद लेखन काल्पनिक भी हो सकता है और किसी वार्ता को ज्यों का त्यों लिखकर भी।
भाषा, बोलने वाले के अनुसार थोड़ी-थोड़ी भिन्न होती है।
उदाहरण के रूप में एक अध्यापक की भाषा छात्र की अपेक्षा ज्यादा संतुलित और सारगर्भित (अर्थपूर्ण) होगी। एक पुलिस अधिकारी की भाषा और अपराधी की भाषा में काफी अन्तर होगा। इसी तरह दो मित्रों या महिलाओं की भाषा कुछ भिन्न प्रकार की होगी। दो व्यक्ति, जो एक-दूसरे के शत्रु हैं- की भाषा अलग होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि संवाद-लेखन में पात्रों के लिंग, उम्र, कार्य, स्थिति का ध्यान रखना चाहिए।
संवाद-लेखन में इन बातों पर भी ध्यान देना चाहिए कि वाक्य-रचना सजीव हो। भाषा सरल हो। उसमें कठिन शब्दों का प्रयोग कम-से-कम हो। संवाद के वाक्य बड़े न हों। संक्षिप्त और प्रभावशाली हों। मुहावरेदार भाषा काफी रोचक होती है। अतएव, मुहावरों का यथास्थान प्रयोग हो।
अच्छी संवाद-रचना के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -
(1) संवाद छोटे, सहज तथा स्वाभाविक होने चाहिए।
(2) संवादों में रोचकता एवं सरसता होनी चाहिए।
(3) इनकी भाषा सरल, स्वाभाविक और बोलचाल के निकट हो। उसमें बहुत अधिक कठिन शब्द तथा अप्रचलित (जिन शब्दों का प्रयोग कोई न करता हो) शब्दों का प्रयोग न हो।
(4) संवाद पात्रों की सामाजिक स्थिति के अनुकूल होने चाहिए। अनपढ़ या ग्रामीण पात्रों और शिक्षित पात्रों के संवादों में अंतर रहना चाहिए।
(5) संवाद जिस विषय या स्थिति के विषय में हों, उस विषय को स्पष्ट करने वाले होने चाहिए अर्थात जब कोई उस संवाद को पढ़े तो उसे ज्ञात हो जाना चाहिए की उस संवाद का विषय क्या है।
(6) प्रसंग के अनुसार संवादों में व्यंग्य-विनोद (हँसी-मजाक) का समावेश भी होना चाहिए।
(7) यथास्थान मुहावरों तथा लोकोक्तियों के प्रयोग करना चाहिए इससे संवादों में सजीवता आ जाती है। और संवाद प्रभावशाली लगते हैं।
(8) संवाद बोलने वाले का नाम संवादों के आगे लिखा होना चाहिए।
(9) यदि संवादों के बीच कोई चित्र बदलता है या किसी नए व्यक्ति का आगमन होता है, तो उसका वर्णन कोष्टक में करना चाहिए।
(10) संवाद बोलते समय जो भाव वक्ता के चेहरे पर हैं, उन्हें भी कोष्टक में लिखना चाहिए।
(11) यदि संवाद बहुत लम्बे चलते हैं और बीच में जगह बदलती हैं, तो उसे दृश्य एक, दृश्य दो करके बांटना चाहिए।
(12) संवाद लेखन के अंत में वार्ता पूरी हो जानी चाहिए