२. सपनों के से दिन'पाठ के आधार पर बताइए कि
कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं डालती|
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O 'सपनों के से दिन' पाठ के आधार पर बताइए कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं डालती|
► कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं डालती। ‘सपनों के से दिन’ पाठ के आधार पर अगर कहें तो लेखक के बचपन में उनके आधे से ज्यादा साथी हरियाणा से या राजस्थान से थे और सब अलग-अलग भाषा बोलते थे। कुछ की भाषा के शब्द तो बेहद रोचक होते थे। लेकिन उन लोगों को आपस में कभी भी आपसी व्यवहार में कोई विशेष दिक्कत नहीं आई। खेलकूद के समय सब सरल व सहज रूप से यह दूसरे की भाषा को समझ लेते थे।
भाषा शब्दों की ही नहीं होती आओ भावों की भी होती है। लेखक और सहपाठी आपस में मिलकर इतनी अभ्यस्त हो चुके थे कि वह भाषा से इधर एक दूसरे के हाव-भाव भी आसानी से समझ लेते थे, इसी कारण उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती थी। इससे सिद्ध होता है कि कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती। भाषा के साथ अन्य कई कारण भी होते हैं।
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कोई भी भाषा आपसी व्यवहार में बाधा नहीं बनती, यह पाठ के इस अंश से सिद्ध होता है हमारे आधे से अधिक साथी राजस्थान तथा हरियाणा से आकर मंडी में व्यापार या दुकानदारी करते थे। जब वे छोटे थे तो उनकी बोली हमें बहुत कम समझ आती थी, इसलिए उनके कुछ शब्द सुन कर हमें हँसी आती थी, लेकिन खेलते समय सभी एक-दूसरे की बात समझ लेते। इससे सिद्ध हो जाता है कि कोई भाषा आपसी व्यवहार में बाधक नहीं होती।