सवैया का संक्षिप्त टिप्पणी
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यह चार चरणों का समपाद वर्णछंद है। वर्णिक वृत्तों में 22 से 26 अक्षर के चरण वाले जाति छन्दों को सामूहिक रूप से हिन्दी में सवैया कहने की परम्परा है।
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उदाहरण
मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन।जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥सेस गनेस महेस दिनेस, सुरेसहु जाहि निरंतर गावैं।जाहि अनादि अनंत अखण्ड, अछेद अभेद सुभेद बतावैं॥नारद से सुक व्यास रहे, पचिहारे तौं पुनि पार न पावैं।ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥कानन दै अँगुरी रहिहौं, जबही मुरली धुनि मंद बजैहैं।माहिनि तानन सों रसखान, अटा चढ़ि गोधन गैहैं पै गैहैं॥टेरि कहौं सिगरे ब्रजलोगनि, काल्हि कोई कितनो समझैहैं।माई री वा मुख की मुसकान, सम्हारि न जैहैं, न जैहैं, न जैहैं॥