Hindi, asked by Braɪnlyємρєяσя, 3 months ago

शुभ रात्रि,


धर्म-निरपेक्षताः मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना



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Answers

Answered by chandreshp541
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Explanation:

इस बात को हम बचपन से सुन रहे है की दुनिया के सभी मजहब आपस में प्यार मोहब्बत और भाई चारे की शिक्षा देते है. दान- धर्म एवं जरूरत मंदों की सहायता करना मानो यह तो सभी धर्मों की आत्मा है. परन्तु दु:ख की बात यह है की आज विश्व में धर्म के नाम पर खून खराबा हो रहा है. प्रत्येक व्यक्ति को अपने- अपने धार्मिक रीती -रिवाजों का पालन करना चाहिए परन्तु हमें यह नहीं भुलना चाहिए की हमारा देश धर्म निरपेक्ष लोक तांत्रिक सिधांत का पालन करते हुए सभी मतों का आदर एवं सन्मान करता है.बावजूद इसके कुछ लोग अपने व्यक्तिगत एवं राजनैतिक फायदे के लिए भोले -भाले लोगों की धार्मिक भावनाओं को आहत करते है. इसका तजा तरीन उदहारण गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का उपवास है.

हाल ही में श्री मोदी जी ने गुजरात में तिन दिवसीय सद्भावना उपवास का आयोजन किया. बहोत से लोगों ने इसे राजनैतिक नाटक घोषित कर दिया. बावजूद इसके इसमें सभी धर्मों के लोगों ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया.लिकिन श्री मोदी जी ने उनकी भावनाओं को आहत किया.

हुआ यूँ की दारुल उलूम देवबंद वालों की सलाह को दरकिनार कर कुछ इमाम लोग मोदी जी के उपवास के अंतिम दिन उन्हें सन्मानित कर रहे थे .लेकिन मोदीजी की कट्टर ता तो देखिए ! उनोहने उनसे शॉल तो ओढ़ ली पर टोपी पेहर ने से साफ इनकार कर दिया. अरे भाई!हाथ मिलाये ,गले लगे और और आपस में दिल ही ना मिले तो यह कौनसी सद्भावना है?जीस प्रकार भगवे कपडे पहन ने से कोई भी व्यक्ति संत नहीं होता ! वैसे ही मोदी जी मात्र टोपी पहन लेते तो कौन से मुसलमान बन जाते? अत: इस पर हम और आप क्या कर सकते है ? उन्हों ने तो वही किया जैसे उनका स्वभाव है.और मन ही मन मानो की हज को जा रही बिल्ली ने अपना असली चेहरा दिखा ही दिया !

Answered by gurjitsingh229
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Answer:

पिछले कुछ दिनों में, कुछ राजनेताओं, 'धार्मिक नेताओं, और कार्यकर्ताओं द्वारा टेलीविजन पर होने वाली बहसों में धार्मिक हस्तियों पर की गई टिप्पणियों के विवाद ने सार्वजनिक रूप से एक केंद्र बिंदु बना लिया है।

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