श्रम से ही राष्ट्र का कल्याण - पर निबंध लिखें
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श्रम संसार में सफलता प्रप्त करने का महत्वपूर्ण साधन है। श्रम करके हम अपने जीवन में ऊँची-से-ऊँची आकांशा को पूरी कर सकते है। संसार कर्म क्षेत्र है अतः यहाँ कर्म करना ही हम सबका धर्म है। किसी कार्य में सफलता तभी मिलती है जब हम परिश्रम करते है।
श्रम ही जीवन को गति प्रदान करता है। यदि हम श्रम की उपेक्षा करते हैं तो हमारे जीवन की गति में रूकावट आ जाती है। चींटी को श्रमजीवी कहा जाता है। वह श्रम करके एक-एक दाना चुनकर संग्रह करती है, ताकि वर्षा के समय उसका उपयोग कर सके। यदि श्रम नहीं करते तो हम अकर्मण्य हो जाते हैं। परिश्रमी व्यक्ति सही प्रकार की कठिनाइयों से जूझने में समर्थ रहता है।
परिश्रमी व्यक्ति ही जीवन में लक्ष्मी का कृपापात्र बनता है। ऐसा व्यक्ति भाग्य का सहारा न लेकर पुरूषार्थ करता है। कवि हरिऔध जी ने परिश्रमी व्यक्ति को ’कर्मवीर’ बताते हुए कहा है-
’’देखकर बाधा विविध बहू विघ्न घबराते नहीं।
श्रह भरोसे भाग्य के दुःख भोग पछताते नहीं।’’
भाग्य का भरोसा केवल आलसी व्यक्ति लेते है। संस्कृत में कहा गया हैं-’’आलस्य ही मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः’’
यत्न करने पर भी यदि परिश्रमी व्यक्ति को सफलता नहीं मिलती, फिर भी वह निराश नहीं होता। वह सफलता के कारणों को जानने का प्रयत्न करता है। वह यह बात भी भली प्रकार जानता है कि बिना परिश्रम के केवल इच्छामात्र से सफलता नहीं मिलती। कहा भी गया है-
’’उद्यमेन ही सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथेः
न हि सुंप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।’’
संसार में प्रत्येक पथ पर संघर्ष करके ही अपना मार्ग बनाया जा सकता है। यदि हम श्रम करते हैं तो हमें जीवन-सघर्ष में सफलता मिलती है। कवि जगदीश गुप्त ने कहा भी है-
’’सच हम नहीं, सच तुम नहीं
सच है महज संघर्ष ही।’’
श्रम के बलबूते पर सामान्य व्यक्तियों ने भी बड़े-बड़े साम्राज्य खड़े करके दिखा दिए। बाबर, शेरशाह, नेपोलियन आदि व्यक्ति आरम्भ में सामान्य व्यक्ति ही थे, पर अन्य श्रम के बलबूते पर उन्होनें इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया। अनेक कठिनाईयांे का सामना करके कोलंबस ने अमेरिका को खोज निकाला।
श्रम साधना करने वालों को यश प्राप्त होता है और वैभव भी। श्रम करके एक निर्धन परिवार का बालक भी उच्च पद पर आसीन हो जाता है और अपने परिवार की आर्थिक स्थिति बदल देता है। श्रम करके हमें अलौकिक आनन्द की प्राप्ति होती है तथा परम संतोष का अनुभव होता है। श्रम करने से शरीर भी स्वस्थ रहता है। शारीरिक श्रम करने वाले प्रायः दीर्घजीवी होते हैं। श्रम करने वाला विकट परिस्थितियों में भी घबराता नहीं है।
इसी श्रम के बलबूते पर हमारे राष्ट्र का कल्याण हो सकेगा। सभी नागरिकों को मिलाकर श्रम करना होगा।
श्रम से ही राष्ट्र का कल्याण
Explanation:
श्रम माल और सेवाओं के उत्पादन में मानव कारक का प्रतिनिधित्व करता है एक अर्थव्यवस्था की। जिस तरह कार, ब्रेड और स्टील के लिए बाजार हैं, उसी तरह लोगों को प्रदान की जाने वाली सेवाओं के लिए बाजार। श्रम बाजार को भेद करने में क्या मदद करता है
भुगतान किए गए कार्य समय के लिए उनके अवैतनिक अवकाश का समय एक जीवित बनाने और सक्षम होने के लिए माल और सेवाओं की खरीद। व्यापार, बदले में, माल का उत्पादन करने के लिए इस श्रम का उपयोग करते हैं और उपभोक्ताओं द्वारा मांग की गई सेवाएं। भारतीय अर्थव्यवस्था को अनौपचारिक या असंगठित श्रम रोजगार के विशाल बहुमत के अस्तित्व की विशेषता है। आर्थिक सर्वेक्षण 2007-08 के अनुसार, भारत के 93% कार्यबल में असंगठित क्षेत्र में कार्यरत और कार्यरत स्व शामिल हैं। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय ने चार समूहों के तहत असंगठित श्रम शक्ति को कब्जे, रोजगार की प्रकृति, विशेष रूप से संकटग्रस्त श्रेणियों और सेवा श्रेणियों के तहत वर्गीकृत किया है।
छोटे और सीमांत किसान, भूमिहीन खेतिहर मजदूर, फसल काटने वाले, मछुआरे, पशुपालन में लगे लोग, बीड़ी बनाने, लेबलिंग और पैकिंग, भवन निर्माण और निर्माण कामगार, चमड़े के मजदूर, बुनकर, कारीगर, नमक कर्मचारी, ईंट भट्टों और पत्थर की खदानों में काम करने वाले, आरा मिलों, तेल मिलों आदि में श्रमिक इसी श्रेणी में आते हैं।
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श्रम क्या है ? पूँजी एवं श्रम में अन्तर स्पष्ट कीजिए ।
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