श्रद्धा-मनु "कौन तुम? संसृति-जलनिधि तीर तरंगों से फेकी मणि एक, कर रहे निर्जन का चुपचाप प्रभा की धारा से अभिषेक? मधुर विश्रान्त और एकान्त- जगत का सुलझा हुआ रहस्य एक करुणामय सुन्दर मौन और चंचल मन का आलस्य !" सुना यह मनु ने मधु गुंजार मधुकरी का-सा जब सानन्द किये मुख नीचा कमल समान प्रथम कवि का ज्यो सुन्दर छन्द। एक झटका-सा लगा सहर्ष, निरखने लगे लुटे-से, कौन- गा रहा यह सुन्दर संगीत? कुतूहल रह न सका फिर मौन| ki vyakhya
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हजैस् ह्व्य्स्ब्व ढूह भ्स. ज्सुस्ज्न्ह्ग्फ़्स ह्जिग्द्क्षब्स्किउष्बे. ह्ह्ह्न्ब्ब्फ़्स्जोव्क्ब्स्क्षज
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