Hindi, asked by tarunvardhaman37, 1 year ago

शिष्टाचार speach of 150 words

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Answered by mpssankar
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 शिष्टाचार किसी व्यक्ति के पसंद, नापसंद, स्वाद, भावनाओं और गुस्से को दिखाते हैं। अच्छा व्यवहार एक व्यक्ति की शालीनता का निशान है एक समाज में रहने के लिए, हमारे पास ऐसे गुण हैं जिनके समाज में सभी लोग जैसे।

हर समाज में, कुछ ऐसे व्यवहार होते हैं जो अच्छे व्यवहार के रूप में स्वीकार किए जाते हैं। वे एक अच्छी शिक्षा और संगोष्ठी के साथ आते हैं वे किसी के लिए मजबूर नोट हैं, लेकिन अच्छे व्यवहार के साथ हम सभी की प्रशंसा जीत सकते हैं।

अच्छे शिष्टाचार के साथ एक व्यक्ति शिष्टाचार से भरा है वह हर किसी के प्रति दयालु और विचारशील है सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वह अपने व्यवहार में बहुत गंभीर हैं। वह भी विनम्र और मरीज है।

एक अच्छा शिष्टाचार के आदमी खुद के बारे में नहीं दावा नहीं करता है वह अपने अच्छे चरित्र को बोलने के बजाय कार्यों में दिखाता है इस प्रकार वह अन्य पुरुषों के लिए पालन करने के लिए एक अच्छा उदाहरण बन जाता है। अच्छे अनुष्ठान भी एक हंसमुख व्यक्ति में देखा जा सकता है ऐसे व्यक्ति को हर किसी को आशा और खुशी मिलती है।

अच्छा व्यवहार बचपन से ही सीखना है एक बच्चे को अपने बुजुर्गों का पालन करना सीखना चाहिए और अपनी उम्र के बच्चों को निष्पक्षता से भी व्यवहार करना चाहिए।

अच्छा व्यवहार एक व्यक्ति को एक सज्जन बनने के लिए दिखाता है वे सभी के दोस्ती और सम्मान जीतने के लिए आवश्यक हैं। हम अच्छे व्यवहार के बिना जीवन में सफल हो सकते हैं।

Answered by vandanasharma37
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हमारा समाज सदैव कुछ नियमों और आचरणों की सीमा से बंधा रहता है। समाज में स्थापित ये नियम ही समाज में संतुलन बनाए रखते हैं। शिष्टतापूर्ण आचरण और व्यवहार को ही शिष्टाचार कहा जाता है। शिष्टाचार को संस्कार की भी संज्ञा दी गई है। शिष्ट व्यक्तियों के आचार, व्यवहार तथा सदाचार शिष्टाचार हैं। बुद्धिमान व्यक्तियों का आचरण शिष्टाचार है। ऐसा आचरण जो साधारणतया एक सामाजिक प्राणी से अपेक्षित हो, शिष्टाचार है। ऊपरी और दिखावटी व्यवहार शिष्टाचार हैं। आवभगत तथा आदर-सत्कार शिष्टाचार हैं। शिष्टाचार या दिखावटी व्यवहार के द्वारा ही हम दूसरों के प्रति अपना आदर भाव और सम्मान व्यक्त करते हैं।

शिष्टाचार मनुष्य में मानवीय गुणों का विकास करता है। मानसिक तनाव से मुक्ति और दैनिक जीवन के कार्यसम्पादन में कष्ट-कठिनाइयों को कम करता है। जीवन में सुख, शांति और सौन्दर्य बिखेरता है । शिष्टाचारी सर्वत्र आदर, सत्कार और सम्मान का पात्र बनता है। समाज उसे भद्र और कुलीन मानता हैं।

विनम्रता शिष्टाचार की अनिवार्य गुण है। वाणी और व्यवहार की विनम्रता शिष्ट आचरण की पहली पहचान है। हित, मित, मृदु और विचारपूर्वक बोलना वाणी का विनय है। अथर्ववेद का ऋषि कामना करता है, ‘जिह्वा अग्रे मधु में जिह्वा मूले मधूदकम्।’ अर्थात् मेरी जीभ के अग्र तथा मध्य भाग में मधुरता रहे। वेदव्यास जी महाभारत के उद्योग-पर्व में वाणी की चार विशेषताएं बताते हुए लिखते हैं

अव्याहतं व्याहताय आहुः, सत्यं वदेद व्याहृतं तद् द्वितीयम्।

प्रियं वदेद व्याहृतं तत् तृतीयं, धर्म देद व्याहृतं तच्चतुर्थम् ॥

(1) व्यर्थ बोलने की अपेक्षा मौन रहना। (2) सत्य बोलना (3) प्रिय बोलना (4) धर्म बोलना वाणी की उत्तरोत्तर श्रेष्ठता है।

असत्य, चुगली, कठोर वचन, पर निन्दा तथा बकवास से बचना चाहिए। कटु वचन मनुष्यता को शत्रु है। कटु वचन का बाण हृदय से कभी निकलता नहीं और इसका घाव कभी भरता नहीं। झूठ के पाँव नहीं होते, इसलिए उस पर कोई विश्वास नहीं करता। तुलसी तो कहते हैं, ‘नहीं असत्य सम पातक पूंजा।'(रामचरित मानस)। निन्दा और बकवास, दोनों उपहास के पात्र हैं। इसलिए कबीर कहते हैं

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय।

अपना तन शीतल करें, औरन को सुख होय॥

व्यवहार और आचरण सिद्धांत के मूल तत्त्व है। इन्हीं के कारण लोग मित्र और शत्रु होते रहते हैं। उदार रहना, कृपा करना, समानता का निर्वाह व्यवहार की कसौटी हैं।

वाणी और व्यवहार के दो-चार उदाहरण पर्याप्त होंगे। संबोधन में ‘हाँ’ या ‘नहीं’ के स्थान पर हाँ जी’, ‘नहीं जी’ शिष्ट आचरण हैं। जब दो व्यक्ति परस्पर बात कर रहे हैं तो बीच में टोकना या बोलना नहीं चाहिए। क्रोधपूर्ण बात में भी कटु और कर्कश शब्दों से बचना चाहिए।

बस स्टॉप हो या टिकट-घर की खिड़की, लाइन को तोड़ना अशिष्टता हैं। इसी प्रकार बस में प्रवेश की सीढ़ियों पर खड़ा होना अशिष्टता है। आरक्षित महिला सीटों पर कब्जा जमाना अशिष्टता है। सीट पर पैर रखकर बैठना अशिष्टता है।

भोजन करते समय मुँह से चप-चप की आवाज करना अशिष्टता है। पंक्ति में भोजन कर रहे हों तो पंक्ति से पहले उठना अशिष्टता है। मना करने पर भी थाली में रोटी, रायता, सन्जी डालना अशिष्टता है।

नाम के उच्चारण या लिखने में नाम से पूर्व श्री, श्रीमतो, श्रीमान्, श्रीयुत लगानी तथा अंत में ‘जी’ प्रयोग शिष्ट-आचर: है। कृतज्ञ होने पर ‘धन्यवाद’ करना, आभार व्यक्त करना शिप्टना है।

व्यक्ति अपना जीवन अपनी सुवि तथा शैली के अनुसार जीता है। उसमें आर्थिक स्थिति, मामाजिक परम्पराएं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी रूढ़िगत संस्कारों का प्रभाव भी रहता है। उसके जीवन में दखल देना और दैनन्दिन जीवन में हस्तक्षेप करना अशिष्टता है। उदाहरण रूप में-बहिन जी, आप साग-सब्ज़ी में बहुत मिर्च डालती हैं। आपके पतिदेव काम से लौटते ही टी.वी. का स्विच क्यों ऑन करते हैं? आपके बच्चे जमीन पर क्यों सोते हैं? आप सपरिवार हर रविवार कहीं बाहर घूमने क्यों जाते हैं ? आपकी बड़ी लड़की बन ठन कर क्यों निकलती है? ये सब बातें अशिष्टता के चिह्न हैं। ऐसी हस्तक्षेप भरी बातें प्रायः कलह का कारण बन जाती हैं।

अनुशासन जीवन का प्राण है, परिष्कार की अग्नि हैं जिससे प्रतिभा योग्यता बन जाती है ।शिष्टाचार की परख है, जिमसे सभ्यता का जन्म होता है। जीवन के हर क्षण, हर परिवेश, हर परिस्थिति में अनुशासन शिष्ट आचरण की पहचान बनता है। सड़क के बाईं और वाहन चलाना अनुशासन है। सड़क पर नहीं, पटड़ी पर चलना शिष्टता की पहचान है। दूसरों की जीवन में हस्तक्षेप न करना तथा सामाजिक, संस्थागत नियमों का पालन करना शिष्टाचरण का परिचायक है। मंदिर, मठ, गुरुद्वारे में जूता उतारकर जाना धर्म-स्थलों का अनुशासनात्मक शिष्टाचार है। राष्ट्रध्वज के चढ़ते-उतरते तथा राष्ट्र-गान के गायन के समय स्तब्ध खड़े रहना अनुशासित शिष्ट आचरण है। सार्वजनिक स्थानों पर थूकना, पानकी पीक, फलों के छिलके या रद्दी कागज़ फेंकना अशिष्टता है।

नियमों के विरुद्ध कार ड्राइव करना, नशे की मौज-मस्ती में वाहन को तेज चलाना, दूसरों की जान-माल और इज्जत पर खेलना, देवी-देवताओं का मखौल उड़ाना, अनापशनाप बकना, लड्ने-मरने को तैयार रहना वर्तमान युग के शिष्ट आचरण हैं। अर्थात् खाओ, पीओ और मौज करो जीवन का सिद्धान्त है। इस सिद्धांत वाक्य के अनुसार व्यवहार शिष्टाचरण है। इस ध्येय प्राप्ति के लिए हर कार्य और कर्म शिष्टाचारिक नियमों का पालन है। वस्तुतः यह शिष्टाचार नहीं, अशिष्टत

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