शक्ति क्या है शक्ति के स्वभाव का वर्णन करो शक्ति संतुलन की शर्त क्या है
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शक्ति-संतुलन का सिद्धान्त (balance of power theory) यह मानता है कि कोई राष्ट्र तब अधिक सुरक्षित होता है जब सैनिक क्षमता इस प्रकार बंटी हुई हो कि कोई अकेला राज्य इतना शक्तिशाली न हो कि वह अकेले अन्य राज्यों को दबा दे।
शक्ति संतुलन की अवधारणा लगभग 15 वीं शताब्दी से अंतर्राष्ट्रीय स्तर में प्रचलित है। शायद इसीलिए कुछ लेखक इसे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का बुनियादी सिद्धान्त तो कुछ इसे सार्वजनिक सिद्धान्त या राजनीति के मौलिक सिद्धान्त की संज्ञा देते हैं। साधारण शब्दों में शक्ति संतुलन का अर्थ है जब एक राज्य/राज्यों का समूह दूसरे राज्य/राज्यों के समूह के सापेक्ष अपनी शक्ति इतनी बढ़ा ले कि वह उसके समकक्ष हो जाए। परन्तु इस धारणा की परिभाषा को लेकर विद्यमान एकमत नहीं हैं। शायद इसीलिए इनिंस एल क्लॉड का कहना है कि यह ऐसी अवधारणा है जिसकी परिभाषा की समस्या नहीं है बल्कि समस्या यह है कि इसकी बहुत सारी परिभाषाएं हैं। इन परिभाषाओं से पहले यह बताना भी आवश्यक है कि यह दो प्रकार की होती हैं -सरल एवं जटिल। सरल या साधारण शक्ति संतुलन जब होता है जब यह तुलना दो राष्टोंं या दो राष्टोंं के बीच में सीधे तौर पर हो। लेकिन यदि यह संतुलन दो समुदायों के परस्पर तथा इनमें सम्मिलित समुदायों में आन्तरिक रूप में भी हो तब यह जटिल संतुलन कहलाता है।
शक्ति संतुलन की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-
(१) सामान्य रूप से यह यथास्थिति बनाए रखने की नीति है, परन्तु वास्तव में यह हमेशा गतिशील व परिवर्तनीय होती है।
(२) यह कोई दैवी वरदान नहीं है, अपितु यह मानव के सतत हस्तक्षेप का परिणाम है।
(३) यह व्यक्तिपरक व वस्तुनिष्ठ दोनों प्रकार से परिभाषित होता है। इतिहासकार हमेशा इसका वस्तुनिष्ठ आकलन करते हैं जबकि राजनयिक हमेशा इसकी व्यक्तिपरक विवेचना करते हैं।
(४) यद्यपि यह शान्ति स्थापित करने का तंत्र है, परन्तु यह मुश्किल से ही कभी शान्ति स्थापित करता है।
(५) यह मुख्यतया महाशक्तियों का खेल है। छोटे राष्ट्र तो मात्रा दर्शक की भूमिका ही निभाते हैं।
(६) इसके सही संचालन हेतु एक संचालक की आवश्यकता होती है जो आज के युग में नदारद है।