History, asked by gxjjc, 1 year ago

shiv ling ki uttapatti kaise hue

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Answered by anjali821
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पूरे भारत में बारह ज्योर्तिलिंग हैं जिसके विषय में मान्यता है कि इनकी उत्पत्ति स्वयं हुई। इनके अलावा देश के विभिन्न भागों में लोगों ने मंदिर बनाकर शिवलिंग को स्थापित किया है और उनकी पूजा करते हैं। शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप। शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है, धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है।



शिवलिंग भगवान शिव और शक्ति की देवी पार्वती का आदि-अनादी एकल रूप है तथा पुरुष और प्रकृति की समानता का प्रतिक भी है अर्थात इस संसार में न केवल पुरुष का और न केवल स्त्री का वर्चस्व है बल्कि दोनों सामान है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस ब्रह्मांड के निर्माण से पहले पृथ्वी एक अंतहीन शक्ति थी, सृष्टि बनने के बाद भगवान विष्णु पैदा हुए और भगवान विष्णु की नाभि से पैदा हुए भगवान ब्रह्मा। पृथ्वी पर पैदा होने के बाद कई सालों तक इन दोनों में युद्ध होता रहा है, दोनों आपस में एक दूसरे को ज्यादा शक्तिशाली मानते रहे।

तभी अचानक आकाश में एक चमकता हुआ पत्थर दिखता है और उसी पल आकाशवाणी होती है कि जो भी इस पत्थर का अंत ढूंढ लेगा उसे ही ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा। वह चमकदार पत्थर शिवलिंग ही था। कुछ अभिलेखों और शास्त्रो-पुराणो के अनुसार बताया गया है की एक बार शिव को अपना होश नहीं था और वो निर्वस्त्र हो भटक रहे थे, उन्हे इस स्थिति में देख ऋषियों ने उन्हें शाप दिया कि उनका लिंग कटकर गिर जाए। जिसके बाद शिव का लिंग कटकर पाताल में चला गया और उससे निकलने वाली ज्योति से संसार में तबाही मचने लगी।



इसके बाद सभी देवतागण देवी पार्वती के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या का समाधान करने की प्रार्थना करने लगे। इसके बाद पार्वती ने शिवलिंग को धारण कर लिया और संसार को प्रलय से बचा लिया। तभी से ऐसा माना जाता है की शिवलिंग के नीचे पार्वती का भाग विराजमान रहता है और शिवलिंग की हमेशा आधी परिक्रमा की जाती है। शिव पुराण में भगवान शिव के 64 रूपो का वर्णन किया गया है और हर एक रूप अपनी एक विश्षेता और कहानी रखता है।

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