shlesh alankar ke hindi me 10 Example.
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चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर ।
को घटि ये वृष भानुजा ,वे हलधर के बीर। ।
यहाँ वृषभानुजा के दो अर्थ है - १
.वृषभानु की पुत्री राधा २.
वृषभ की अनुजा गाय । इसी प्रकार हलधर के भी दो अर्थ है - १.बलराम २.हल को धारण करने वाला बैल
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
यहाँ पानी का प्रयोग तीन बार किया गया है, किन्तु दूसरी पंक्ति में प्रयुक्त पानी शब्द के तीन अर्थ हैं - मोती के सन्दर्भ में पानी का अर्थ चमक या कान्ति मनुष्य के सन्दर्भ में पानी का अर्थ इज्जत (सम्मान) चूने के सन्दर्भ में पानी का अर्थ साधारण पानी(जल) है।अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
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को घटि ये वृष भानुजा ,वे हलधर के बीर। ।
यहाँ वृषभानुजा के दो अर्थ है - १
.वृषभानु की पुत्री राधा २.
वृषभ की अनुजा गाय । इसी प्रकार हलधर के भी दो अर्थ है - १.बलराम २.हल को धारण करने वाला बैल
रहिमन पानी राखिये,बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चून।।
यहाँ पानी का प्रयोग तीन बार किया गया है, किन्तु दूसरी पंक्ति में प्रयुक्त पानी शब्द के तीन अर्थ हैं - मोती के सन्दर्भ में पानी का अर्थ चमक या कान्ति मनुष्य के सन्दर्भ में पानी का अर्थ इज्जत (सम्मान) चूने के सन्दर्भ में पानी का अर्थ साधारण पानी(जल) है।अतः यहाँ श्लेष अलंकार है।
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उदाहरण
चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये वृष भानुजा, वे हलधर के बीर।।
इस जगह पर वृषभानुजा के दो अर्थ हैं-वृषभानु की पुत्री राधावृषभ की अनुजा गाय।इसी प्रकार हलधर के भी दो अर्थ हैं-बलरामहल को धारण करने वाला बैल
दोय तीनि अरु भांति बहु आवत जामें अर्थ।
श्लेष नाम तासों कहत जिनकी बुद्धि समर्थ।।
अर्थात जिस पद में एक शब्द के दो या तीन अथवा इससे अधिक अर्थ ध्वनित हों वाहन श्लेष अलंकार होता है।
जब किसी शब्द का एक बार प्रयोग होता है और प्रसंगानुसार उस शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। श्लेष का अर्थ है, चिपकना = मिलना। अर्थात जब एक ही शब्द के साथ अनेक शब्द मिले हुए होते हैं, तब श्लेष अलंकार होता है
‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून।
पानी गए ना उबरै मोती, मानुस, चून।।’
इस पंक्ति में पानी के तीन अर्थ क्रमशः ‘कांति(चमक), आत्मप्रतिष्ठा और जल’ शब्दों में बिना भंग (टुकड़े) के ही स्पष्ट हैं अतः यहाँ अभंग श्लेष है।
‘चिर जीवों जोरी जुरें, क्यों न सनेह गंभीर
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर’
प्रस्तुत वाक्य में वृषभानुजा का केवल एक बार प्रयोग हुआ है परंतु भंग करने पर भिन्न-भिन्न अर्थ प्राप्त होते हैं। अर्थात
वृषभ+अनुजा = बैल की बहन
वृषभानु+जा = वृषभानु की पुत्री
इसी तरह एक दूसरे उदाहरण को देखिए :
‘हे भूप! कुबेर, सुरेस सी सबों ने देखी वसुधा रणचातुरी तुम्हारी’।
इस पद में ‘किसी राजा की प्रशंसा करते हुए कवि उसे कुबेर और इंद्र दोनों के समान बता रहा है और विशेषण ऐसा देता है जो कुबेर और इंद्र दोनों में भंग करके लागू हो जाता है।
कुबेर के सदृश - वसु(धन) + धारण(रखने की) + चातुरी (निपुणता)।
इंद्र के सदृश - वसुधा (पृथ्वी में) + रण (युद्ध की) + चातुरी (निपुणता)।
इस प्रकार एक बार ‘वसु+धारण’ और दूसरी बार ‘वसुधा+रण’ भंग करके अर्थ निकालने से सभंग श्लेष है।
इसका एक और उदाहरण द्रष्टव्य है :
“कुजन पाल गुनबर्जित अकुल अनाथ।
कहौं कृपानिधि राउर कस गुनगाथ।।”
यहाँ कुजन पाल के भिन्न-भिन्न अर्थ है यानी कु = पृथ्वी, जन = सेवक अर्थात पृथ्वी और भक्तो का पालन करने वाला तथा कुजन = दुर्जन पालने वाला भी अर्थ व्यंजित होता है। वही गुनबर्जित = गुणों से रहित अथवा गुणों से परे, अकुल = कुलहीन अथवा कुल की सीमा से परे; अनाथ = जिसका कोई स्वामी नहीं अर्थात सबका स्वामी तथा जिसका कोई धनी धोरी न हो
चिरजीवो जोरी जुरे क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये वृष भानुजा, वे हलधर के बीर।।
इस जगह पर वृषभानुजा के दो अर्थ हैं-वृषभानु की पुत्री राधावृषभ की अनुजा गाय।इसी प्रकार हलधर के भी दो अर्थ हैं-बलरामहल को धारण करने वाला बैल
दोय तीनि अरु भांति बहु आवत जामें अर्थ।
श्लेष नाम तासों कहत जिनकी बुद्धि समर्थ।।
अर्थात जिस पद में एक शब्द के दो या तीन अथवा इससे अधिक अर्थ ध्वनित हों वाहन श्लेष अलंकार होता है।
जब किसी शब्द का एक बार प्रयोग होता है और प्रसंगानुसार उस शब्द के अनेक अर्थ निकलते हैं तब श्लेष अलंकार होता है। श्लेष का अर्थ है, चिपकना = मिलना। अर्थात जब एक ही शब्द के साथ अनेक शब्द मिले हुए होते हैं, तब श्लेष अलंकार होता है
‘रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून।
पानी गए ना उबरै मोती, मानुस, चून।।’
इस पंक्ति में पानी के तीन अर्थ क्रमशः ‘कांति(चमक), आत्मप्रतिष्ठा और जल’ शब्दों में बिना भंग (टुकड़े) के ही स्पष्ट हैं अतः यहाँ अभंग श्लेष है।
‘चिर जीवों जोरी जुरें, क्यों न सनेह गंभीर
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर’
प्रस्तुत वाक्य में वृषभानुजा का केवल एक बार प्रयोग हुआ है परंतु भंग करने पर भिन्न-भिन्न अर्थ प्राप्त होते हैं। अर्थात
वृषभ+अनुजा = बैल की बहन
वृषभानु+जा = वृषभानु की पुत्री
इसी तरह एक दूसरे उदाहरण को देखिए :
‘हे भूप! कुबेर, सुरेस सी सबों ने देखी वसुधा रणचातुरी तुम्हारी’।
इस पद में ‘किसी राजा की प्रशंसा करते हुए कवि उसे कुबेर और इंद्र दोनों के समान बता रहा है और विशेषण ऐसा देता है जो कुबेर और इंद्र दोनों में भंग करके लागू हो जाता है।
कुबेर के सदृश - वसु(धन) + धारण(रखने की) + चातुरी (निपुणता)।
इंद्र के सदृश - वसुधा (पृथ्वी में) + रण (युद्ध की) + चातुरी (निपुणता)।
इस प्रकार एक बार ‘वसु+धारण’ और दूसरी बार ‘वसुधा+रण’ भंग करके अर्थ निकालने से सभंग श्लेष है।
इसका एक और उदाहरण द्रष्टव्य है :
“कुजन पाल गुनबर्जित अकुल अनाथ।
कहौं कृपानिधि राउर कस गुनगाथ।।”
यहाँ कुजन पाल के भिन्न-भिन्न अर्थ है यानी कु = पृथ्वी, जन = सेवक अर्थात पृथ्वी और भक्तो का पालन करने वाला तथा कुजन = दुर्जन पालने वाला भी अर्थ व्यंजित होता है। वही गुनबर्जित = गुणों से रहित अथवा गुणों से परे, अकुल = कुलहीन अथवा कुल की सीमा से परे; अनाथ = जिसका कोई स्वामी नहीं अर्थात सबका स्वामी तथा जिसका कोई धनी धोरी न हो
prachi106:
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