short stories in hindi
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वर्षो पहले अनुपुर में धनीराम नाम का एक व्यापारी रहा करता था । उसके पास एक गधा था । वह उसे लल्लू के नाम से पुकारा करता था । धनीराम रोज के बोरी नमक की गधे पर लादकर शहर को ले जाया करता था । शहर जाने के लिए उसे नदी पार करनी होती थी । लम्बे समय से एक ही रास्ते से रोज आने जाने के कारण लल्लू रास्ता अच्छी तरह से पहचान गया था ।
धनीराम को जब विश्वाश हो गया तो वो गधे पर बोरी लाद देता और उसे शहर एक दुकानदार के पास अकेले ही भेज दिया करता था । शहर में एक व्यापारी उसकी बोरी उतार लेता तो लल्लू उसी रास्ते वापिस लौट आया करता था । एक दिन जब लल्लू पानी में उतर रहा था तो नमक की बोरी थोड़ी पानी में भीग गयी जिसके कारण थोडा नमक पानी में घुल गया जिस से बोरी का वजन कम हो गया और लल्लू को बहुत आराम मिला । इस तरह उसे पता चल गया कि बोरी के पानी में भीग जाने के कारण बोझ कम हो जाता है तो लल्लू हर रोज यही करने लगा । एक दिन शहर के व्यापारी को पानी से भीगी बोरी को देखकर थोडा शक हुआ तो उसने उसे तौल कर देखा तो नमक कम निकला इस पर उसने एक कागज पर सारी बात लिखकर बोरी में रख दिया ।
यह सुनकर धनीराम चौक गया और उस दिन उसने गधे की पीठ पर बोरी लादकर उसका पीछा किया तो जब उसने गधे को पानी में डुबकी लगाते हुए देखा तो वो भी उसकी सारी चालाकी समझ गया और इस पर उसने अगले दिन गधे की पीठ पर नमक की जगह कपास रखी और उसे रवाना कर दिया । गधे ने इस बार पहले की तरह जैसे ही पानी में डुबकी लगायी तो वजन कम होने की जगह और बढ़ गया । अब तो गधे से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था । जैसे तेसे वो पानी में से निकला और पहुंचा । फिर उसने आगे से कभी ऐसा नहीं किया और धनीराम ने इस तरह आलसी गधे को अच्छा सबक सिखा दिया ।
कैसे कौए हुऐ कालेएक बार की बात है । एक ऋषि ने एक कौवे को अमृत की तलाश में भेजा लेकिन कौवे को ये चेतावनी भी दी कि केवल अमृत के बारे में पता करना है उसे पीना नहीं है अन्यथा तुम इसका कुफल भोगोगे । कौवे ने हामी भर दी और उसके बाद सफेद कौवे ने ऋषि से विदा ली ।
एक साल के कठोर परिश्रम के बाद कौवे को आखिर अमृत के बारे में पता चल गया । वह इसे पीने की लालसा रोक नहीं पाया और इसे पी लिया जबकि ऋषि ने उसे कठोरता से उसे नहीं पीने के लिए पाबंद किया था । सो उसने ऐसा कर ऋषि को दिया अपना वचन तोड़ दिया।
पीने के बाद उसे पछतावा हुआ और उसने वापिस आकर ऋषि को पूरी बात बताई तो ऋषि ये सुनते ही आवेश में आ गये और कौवे को शाप दे दिया और कहा क्योंकि तुमने अपनी अपवित्र चोंच से अमृत की पवित्रता को नष्ट किया है इसलिए आज के बाद पूरी मानवजाति तुमसे घृणा करेगी और सारे पंछियों में केवल तुम होंगे जो सबसे नफरत भरी नजरो से देखे जायेंगे । किसी अशुभ पक्षी की तरह पूरी मानवजाति हमेशा तुम्हारी निंदा करेगी ।
और चूँकि अमृत का पान किया है इसलिए तुम्हारी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होगी । कोई बीमारी भी नहीं होगी और तुम्हे वृद्धावस्था भी नहीं आएगी । भाद्रपद के महीने के सोलह दिन तुम्हे पितरो का प्रतीक मानकर आदर दिया जायेगा । तुम्हारी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होगी इतना कहकर ऋषि ने अपने कमंडल के काले पानी में उसे डुबो दिया । काले रंग का बनकर कौवा उड़ गया तभी से कौवा काले रंग के हो गये ।
हालाँकि ये कहानियां लोककथाओं के रूप में प्रचलित है लेकिन फिर भी मेने अक्सर कई लेखो और मान्यताओं में किसी एक के किये कर्मो की सजा उसकी पूरी जाति को भुगतनी पड़ी हो ऐसा देखा है लेकिन मेरे विचार ये केवल काल्पनिक लेख ही होंगे क्योंकि आधुनिक युग की परिभाषा में जन्हा लोग तर्क करने की क्षमता रखते है किसी भी धारणा का अँधा अनुकरण करने से पहले ये सब पहले के जमाने में लोगो को कुछ शिक्षाओं को उनके मानसिक स्तर पर समझाने का ये प्रयास ही रहा होगा । ऐसा हम मान सकते है ।