shringaar Ras ka udharan 5
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दरद कि मारी वन-वन डोलू वैध मिला नाहि कोई
मीरा के प्रभु पीर मिटै, जब वैध संवलिया होई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
जाके सिर मोर मुकुट मेरा पति सोई
बसों मेरे नैनन में नन्दलाल
मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल
अरे बता दो मुझे कहाँ प्रवासी है मेरा
इसी बावले से मिलने को डाल रही है हूँ मैँ फेरा
कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजियात
भरे भौन में करत है, नैननु ही सौ बात
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1) दरद कि मारी वन-वन डोलू वैध मिला नाहि कोई मीरा के प्रभु पीर मिटै, जब वैध संवलिया होई
2)मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई जाके सिर मोर मुकुट मेरा पति सोई
3)बसों मेरे नैनन में नन्दलाल मोर मुकुट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल
4)अरे बता दो मुझे कहाँ प्रवासी है मेराइसी बावले से मिलने को डाल रही है हूँ मैँ फेरा
5)कहत नटत रीझत खिझत, मिलत खिलत लजिया भरे भौन में करत है, नैननु ही सौ बात
maRk it as BRAINLIST Answer
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