Sikh Dharm ke buniyadi Siddhant kya hai
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सिख धर्म पूरे विश्व का पांचवा सबसे बड़ा धर्म है. सिखिस्म में भगवान् को वाहेगुरु कहते हैं जो निरंकार, अकाल और अलख निरंजन हैं. इस धर्म की शुरुआत गुरु नानक ने करि थी. सिख धर्म में दस गुरु रहे हैं और गुरु गोबिंद सिंह आखिरी गुरु थे. उन्होंने एलान किया की उनके बाद गुरु ग्रन्थ साहिब उनका उत्तराधिकारी रहेगा. गुरु ग्रन्थ साहेब सिखों की धर्म पुस्तक है और इस पुस्तक को सनातन जीवित गुरु मानते हैं. पांच के वह चीजें हैं जो महान गुरु, गुरु गोबिंद सिंघजी ने खालसा सिखों को हमेशा धारण करने के लिए कहे थे. वह सिख जिसने अमृत लिया है और पांचों के को धारण करता है उससे अमृतधारी सिख कहते हैं और वह सिख जो गुरे ग्रन्थ साहिब की शिक्षाओं को मानता है और जिसने अमृत नहीं लिया है उसे सहजधारी सिख कहते हैं. पांच के कुछ इस प्रकार हैं:
1.केश:केश को सिख अपरिहार्य भाग मानते हैं अपने जिस्म का. सिखिस्म में मानते हैं की केश को कभी नहीं काटना चाहिए.
2. कंगा:एक लकड़ी का कंगा हमेशा बालों में होना चाहिए. इस कंगे से दिन में दो बार बाल बनाने चाहिए. कंगा सिखों को याद दिलाता है की हमेशा साफ़ सुथरे रहना चाहिए और ज़िन्दगी भी ऐसे ही साफ़ होनी चाहिए.
3.कड़ा: कड़ा एक लोहे का कगन जो सिखों के हाथों में हमेशा होता है. ये इस बात का प्रतीक है की भगवान् अनंत है. 1699 में गुरु गोबिंद सिंघजी ने बैसाखी अमृत संचार में अपने शिष्यों को कड़ा पहन ने के लिए कहा.
4.कचेरा:कचेरा एक कपास का वस्त्र है जिसे हमेशा पहने रहना चाहिए. ये वस्त्र मनुष्य को आत्म सम्मान याद दिलाता है और हवस जो की सिखिस्म में पाप है उससे दूर रहने का प्रतीक है. एक सिख लड़ाई के लिए हमेशा तैयार है इस बात का प्रतीक कचेरा है.
5.किरपान:किरपान एक चाकू है जो इस बात का प्रतीक है की एक सिख हमेशा किसी निर्बल और पीड़ा से गुजर रहे व्यक्ति की मदत करने के लिए तैयार है. सारे सिखों को हमेशा एक किरपान अपने पास रखना चाहिए. एक सिख कभी भी अपनी आखें मूँद कर नहीं रह सकता और उसे हमेशा पीड़ित व्यक्ति की मदत करनी चाहिए.
गुरूनानक देव जी ने अपने अनुयायियों को जीवन के दस सिद्धांत दिए थे। यह सिद्धांत आज भी प्रासंगिक है।
1. ईश्वर एक है।
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
3. जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है।
4. सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
5. ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए।
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएँ।
7. सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता माँगना चाहिए।
8. मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
10. भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।