story in hindi .1. imaandaar lakahada .2.bandar aur magarmach . words
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1) एक लकड़हारा था | एक बार वह नदी के किनारे एक पेड़ से लकड़ी काट रहा था | एकाएक उसके हाथ से कुल्हाड़ी छूटकर नदी मे गिर पड़ी | नदी गहरी थी | उसका प्रवाह भी तेज था | लकड़हारे ने नदी से कुल्हाड़ी निकलने की बहतु कोशिश की, पर वह उसे नहीं मिली | इससे लकड़हारा बहुत दुखी हो गया| इतने मे एक देवदूत वहाँ से गुजरा | लकड़हारे को मुहँ लटकाए खड़ा देखकर उसे दया आ गयी| वह लकड़हारे के पास आया और बोला, “चिंता मत करो | मैं नदी में से तुम्हारी कुल्हाड़ी अभी निकल देता हूँ |” यह कहकर देवदूत नदी मे कूद पड़ा |
देवदूत पानी से बाहर निकला तो उसके हाथ मे एक सोने की कुल्हाड़ी थी | वह लकड़हारे को सोने की कुल्हाड़ी देने लगा, तो लकड़हारे ने कहा, “नहीं नहीं, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है | मे इसे नहीं ले सकता |”
देवदूत ने फिर नदी मे डुबकी लगायी | इस बार वह चांदी की कुल्हाड़ी लेकर बहार आया | ईमानदार लकड़हारे ने कहा, “यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है |”
देवदूत ने तीसरी बार नदी मे डुबकी लगायी | इस बार वह एक साधारण से लोहे की कुल्हाड़ी लेकर बाहर आया |
“हाँ, यही मेरी कुल्हाड़ी है, “लकड़हारे ने खुश होकर कहा |
उस गरीब की ईमानदारी देखकर देवदूत बहुत खुश हुआ | उसने लकड़हारे को उसकी लोहे के कुल्हाड़ी दे दी | साथ ही उसने सोने एवं चांदी की कुल्हाड़ियाँ भी उसे पुरस्कार के रूप मे दे दी |
Moral of Story – ईमानदारी से बढ़कर कोई चीज नहीं | हमे अपने जीवन मे कठिन से कठिन समय मे भी ईमानदारी को नहीं छोड़ना चाहिए |
2) एक नदी के किनारे एक बड़ा-सा जामुन का पेड़ था। उस पेड पर एक बंदर रहता था। नीचे नदी में एक मगरमच्छ अपनी बीवी के साथ रहता था। धीरे-धीरे मगरमच्छ और बंदर में दोस्ती हो गई।
बंदर पेड़ से मीठे-मीठे रसीले जामुन गिराता था और मगरमच्छ उन जामुनों को खाया करता था। एक बार कुछ जामुन मगरमच्छ अपनी बीवी के लिए ले गया।
मीठे और रसीले जामुन खाने के बाद मगरमच्छ की पत्नि ने सोचा कि जब जामुन इतने मीठे हैं तो इन जामुनों को रोज खाने वाले बंदर का कलेजा कितना मीठा होगा?
उसने मगरमच्छ से कहा कि तुम अपने दोस्त बंदर को घर लेकर आना। मैं उसका कलेजा खाना चाहती हूँ।
अगले दिन जब नदी किनारे मगरमच्छ और बंदर मिले तो मगरमच्छ ने बंदर को अपने घर चलने के लिए कहा। बंदर ने कहा कि मैं तुम्हारे घर कैसे चल सकता हूँ? मुझे तो तैरना नहीं आता।
तब मगर ने कहा कि मैं तुम्हे अपनी पीठ पर बैठा कर ले चलूँगा। मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर नदी में घुमने और उसके घर जाने के लिए बंदर ने तुरंत हाँ कर दी।
बंदर झट से मगर की पीठ पर बैठ गया। मगरमच्छ नदी में उतरा और तैरने लगा। बंदर पहली बार नदी में सैर कर रहा था। उसे बहुत मजा आ रहा था। दोनों दोस्तों ने आपस में बातचीत करना शुरू कर दी।
आपस में बात करते हुए वो दोनों नदी के बीच में पहुँच गए। बातों-बातों में मगर ने बंदर को बताया कि उसकी पत्नी ने बंदर का कलेजा खाने के लिए उसे बुलाया है।
मगरमच्छ के मुँह से ऐसी बात सुनकर बंदर को झटका लग गया। उसने खुद को संभालते हुए कहा कि दोस्त ऐसी बात तो तुझे पहले ही बताना थी। हम बंदर अपना कलेजा पेड़ पर ही रखते हैं। अगर तुम्हें मेरा कलेजा खाना है तो मुझे वापस ले जाना होगा।
मैं पेड़ से अपना कलेजा लेकर फिर तुम्हारी पीठ पर सवार हो जाऊँगा। हम वापस तुम्हारे घर चलेंगे। तब भाभीजी मेरा कलेजा खा लेंगी।
मगर ने बंदर की बात मान ली और वह पलटकर वापस नदी के किनारे की ओर चल दिया। नदी के किनारे पर आने के बाद मगर की पीठ से बंदर उतरा। उसने मगर से कहा कि वो अपना कलेजा लेकर अभी वापस आ रहा है।
बंदर पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद बंदर ने मगर से कहा कि आज से तेरी- मेरी दोस्ती खत्म। बंदर अपना कलेजा पेड़ पर रखेंगे तो जिंदा कैसे रहेंगे?
इस तरह अपनी चतुराई और मोनू ने अपनी जान बचा ली और मूर्ख सोनू मुँह लटकाकर लौट गया।
देवदूत पानी से बाहर निकला तो उसके हाथ मे एक सोने की कुल्हाड़ी थी | वह लकड़हारे को सोने की कुल्हाड़ी देने लगा, तो लकड़हारे ने कहा, “नहीं नहीं, यह मेरी कुल्हाड़ी नहीं है | मे इसे नहीं ले सकता |”
देवदूत ने फिर नदी मे डुबकी लगायी | इस बार वह चांदी की कुल्हाड़ी लेकर बहार आया | ईमानदार लकड़हारे ने कहा, “यह कुल्हाड़ी भी मेरी नहीं है |”
देवदूत ने तीसरी बार नदी मे डुबकी लगायी | इस बार वह एक साधारण से लोहे की कुल्हाड़ी लेकर बाहर आया |
“हाँ, यही मेरी कुल्हाड़ी है, “लकड़हारे ने खुश होकर कहा |
उस गरीब की ईमानदारी देखकर देवदूत बहुत खुश हुआ | उसने लकड़हारे को उसकी लोहे के कुल्हाड़ी दे दी | साथ ही उसने सोने एवं चांदी की कुल्हाड़ियाँ भी उसे पुरस्कार के रूप मे दे दी |
Moral of Story – ईमानदारी से बढ़कर कोई चीज नहीं | हमे अपने जीवन मे कठिन से कठिन समय मे भी ईमानदारी को नहीं छोड़ना चाहिए |
2) एक नदी के किनारे एक बड़ा-सा जामुन का पेड़ था। उस पेड पर एक बंदर रहता था। नीचे नदी में एक मगरमच्छ अपनी बीवी के साथ रहता था। धीरे-धीरे मगरमच्छ और बंदर में दोस्ती हो गई।
बंदर पेड़ से मीठे-मीठे रसीले जामुन गिराता था और मगरमच्छ उन जामुनों को खाया करता था। एक बार कुछ जामुन मगरमच्छ अपनी बीवी के लिए ले गया।
मीठे और रसीले जामुन खाने के बाद मगरमच्छ की पत्नि ने सोचा कि जब जामुन इतने मीठे हैं तो इन जामुनों को रोज खाने वाले बंदर का कलेजा कितना मीठा होगा?
उसने मगरमच्छ से कहा कि तुम अपने दोस्त बंदर को घर लेकर आना। मैं उसका कलेजा खाना चाहती हूँ।
अगले दिन जब नदी किनारे मगरमच्छ और बंदर मिले तो मगरमच्छ ने बंदर को अपने घर चलने के लिए कहा। बंदर ने कहा कि मैं तुम्हारे घर कैसे चल सकता हूँ? मुझे तो तैरना नहीं आता।
तब मगर ने कहा कि मैं तुम्हे अपनी पीठ पर बैठा कर ले चलूँगा। मगरमच्छ की पीठ पर बैठकर नदी में घुमने और उसके घर जाने के लिए बंदर ने तुरंत हाँ कर दी।
बंदर झट से मगर की पीठ पर बैठ गया। मगरमच्छ नदी में उतरा और तैरने लगा। बंदर पहली बार नदी में सैर कर रहा था। उसे बहुत मजा आ रहा था। दोनों दोस्तों ने आपस में बातचीत करना शुरू कर दी।
आपस में बात करते हुए वो दोनों नदी के बीच में पहुँच गए। बातों-बातों में मगर ने बंदर को बताया कि उसकी पत्नी ने बंदर का कलेजा खाने के लिए उसे बुलाया है।
मगरमच्छ के मुँह से ऐसी बात सुनकर बंदर को झटका लग गया। उसने खुद को संभालते हुए कहा कि दोस्त ऐसी बात तो तुझे पहले ही बताना थी। हम बंदर अपना कलेजा पेड़ पर ही रखते हैं। अगर तुम्हें मेरा कलेजा खाना है तो मुझे वापस ले जाना होगा।
मैं पेड़ से अपना कलेजा लेकर फिर तुम्हारी पीठ पर सवार हो जाऊँगा। हम वापस तुम्हारे घर चलेंगे। तब भाभीजी मेरा कलेजा खा लेंगी।
मगर ने बंदर की बात मान ली और वह पलटकर वापस नदी के किनारे की ओर चल दिया। नदी के किनारे पर आने के बाद मगर की पीठ से बंदर उतरा। उसने मगर से कहा कि वो अपना कलेजा लेकर अभी वापस आ रहा है।
बंदर पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद बंदर ने मगर से कहा कि आज से तेरी- मेरी दोस्ती खत्म। बंदर अपना कलेजा पेड़ पर रखेंगे तो जिंदा कैसे रहेंगे?
इस तरह अपनी चतुराई और मोनू ने अपनी जान बचा ली और मूर्ख सोनू मुँह लटकाकर लौट गया।
kartikeyanyadav007:
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