Hindi, asked by Podilapu7064, 1 year ago

Sudama charit summary in hindi

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Answered by abhilasha21290pdk2jb
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सुदामा चरित में कवि ने कृष्ण तथा उनके भक्त के मध्य प्रेम को व्यक्त किया है। सुदामा एक गरीब ब्राह्णाण है और कृष्ण द्वारिका के राजा। अपने गरीब मित्र को आया देखकर कृष्ण विहिल हो उठते हैं और उसकी खुब आवभगत करते हैं। उनकी मित्रता के मध्य अमीर-गरीब की दीवार नहीं आती है। कृष्ण अपने मित्र के सम्मान की रक्षा करते हुए बिना बोले ही उसकी सहायता करते हैं और मित्रता का कर्तव्य निभाते हैं। सुदामा अपने मित्र की कृपा से धन्य होकर कृष्णमय हो जाते हैं।
Answered by Disha10122006
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Answer:

ये पद उस प्रसिद्ध प्रसंग का चित्रण करते हैं जब सुदामा और कृष्ण का मिलना होता है। दोनों बचपन के मित्र होते हैं। वयस्क होने पर कृष्ण राजा बन जाते हैं लेकिन सुदामा निर्धन ही रहते हैं। अपनी पत्नी के कहने पर सुदामा कुछ मदद की उम्मीद से कृष्ण से मिलने जाते हैं।

Explanation:

कृष्ण का द्वारपाल आकर बताता है कि एक व्यक्ति जिसके सिर पर न तो पगड़ी है और ना ही जिसके पाँव में जूते हैं, उसने फटी सी धोती पहने है और बड़ा ही दुर्बल लगता है। वह चकित होकर द्वारका के वैभव को निहार रहा है और अपका पता पूछ रहा है। वह अपना नाम सुदामा बता रहा है।

कृष्ण तुरंत जाकर सुदामा को लिवाने पहुँच जाते हैं। उनके पैरों की बिवाई और उनपर काँटों के निशान देखकर कृष्ण कहते हैं कि हे मित्र तुमने बहुत कष्ट में दिन बिताए हैं। इतने दिनों में तुम मुझसे मिलने क्यों नहीं आए? सुदामा की खराब हालत देखकर कृष्ण बहुत रोये। कृष्ण इतना रोये कि सुदामा के पैर पखारने के लिए परात में जो पानी था उसे छुआ तक नहीं, और सुदामा के पैर कृष्ण के आँसुओं से ही धुल गये।

सुदामा के स्वागत सत्कार के बाद कृष्ण उनसे हँसी मजाक करने लगे। कृष्ण ने कहा कि लगता है भाभी ने मेरे लिये कोई उपहार भेजा है। उसे तुम अपनी बगल में दबाए क्यों हो, मुझे देते क्यों नहीं? तुम अभी भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आओगे। बचपन में जब गुरुमाता हमारे लिये चने देती थी तो सारा तुम हड़प जाते थे। उसी तरह से आज भी तुम भाभी के दिये हुए चिवड़े को मुझसे छुपा रहे हो।

सुदामा फिर अपने घर की ओर लौट चलते हैं। जिस उम्मीद से वे कृष्ण से मिलने गये थे, उसका कुछ भी नहीं हुआ। कृष्ण के पास से वे खाली हाथ लौट रहे थे। लौटते समय सुदामा थोड़े खिन्न भी थे और सोच रहे थे कि कृष्ण को समझना मुश्किल है। एक तरफ तो उसने इतना सम्मान दिया और दूसरी ओर मुझे खाली हाथ लौटा दिया। मैं तो जाना भी नहीं चाहता था, लेकिन पत्नी ने मुझे जबरदस्ती कृष्ण से मिलने भेज दिया था। जो अपने बचपन में थोड़े से मक्खन के लिए घर-घर भटकता था उससे कोई उम्मीद करना ही बेकार है।

जब सुदामा अपने गाँव पहुँचे तो वहाँ का दृश्य पूरी तरह से बदल चुका था। अपने सामने आलीशान महल, हाथी घोड़े, बाजे गाजे, आदि देखकर सुदामा को लगा कि वे रास्ता भूलकर फिर से द्वारका पहुँच गये हैं। थोड़ा ध्यान से देखने पर सुदामा को समझ में आया कि वे अपने गाँव में ही हैं। वे लोगों से पूछ रहे थे लेकिन अपनी झोपड़ी को खोज नहीं पा रहे थे।

जब सुदामा को सारी बात समझ में आ गई तो वे कृष्ण के गुणगान करने लगे। सुदामा सोचने लगे कि कमाल हो गया। जहाँ सर के ऊपर छत नहीं थी वहाँ अब सोने का महल शोभा दे रहा है। जिसके पैरों में जूते नहीं हुआ करते थे उसके आगे हाथी लिये हुए महावत खड़ा है। जिसे कठोर जमीन पर सोना पड़ता था उसके लिए फूलों से कोमल सेज सजा है। प्रभु की लीला अपरंपार है।

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