History, asked by Kaushal7646, 1 year ago

Summary of chapter of class 10 bal gobin bhagat hindi

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Answered by Lucky451
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बालगोबिन भगत' एक अनूठी रचना है। गाँव के जन-जीवन को लेखक रामवृक्ष बेनीपुरी ने बड़ी सुंदरता से इस कहानी में उकेरा है। इसमें लेखक बालगोबिन जी के माध्यम से सामाजिक रूढ़ियों पर प्रहार करते हुए नज़र आते हैं। भारतीय संस्कृति में साधु-संतों का विशेष रूप से मान-सम्मान किया जाता है। उनकी वेशभूषा देखकर ही लोग उन्हें आदर भाव देने लगते हैं। लेखक अपनी कहानी से साधु-संतों की सही परिभाषा को समाज के समक्ष प्रस्तुत करता है। उसके अनुसार मात्र साधुओं से वस्त्र धारण कर लेना और घर-परिवार छोड़ देना, व्यक्ति को साधु-संत नहीं बना सकता। साधु-संत बनने के लिए उनके आदर्शों को जीवन में उतारना सही अर्थों में साधुत्व कहलाता है। बालगोबिन ने परिवार को नहीं छोड़ा अपने कर्त्तव्यों को पूरी निष्ठा के साथ निभाया है। वह कभी झूठ नहीं बोले, सबके साथ खरा व्यवहार करते थे, बिना पूछे किसी की चीज़ नहीं लेते थे, हमेशा भजन गाते, खेती करके जो कुछ मिलता उसे भगवान को भोग लगाए बिना स्वयं नहीं लेते थे। उनके ये गुण उन्हें साधु-संतों की श्रेणी में सबसे ऊपर खड़ा करते थे। उन्होंने समाज में चली आ रही सड़ी-गली परंपराओं को तोड़ा। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि उनके बेटे की मृत्यु के पश्चात अपनी बहु के भाई को उसका दूसरा विवाह करने का आदेश दे दिया। बालगोबिन जैसे सच्चे साधु समाज में अब लुप्त हो गए हैं।
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Answered by p111005singh
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बालगोबिन भगत पाठ का सार- बालगोबिन भगत रेखाचित्र के माध्यम से रामवृक्ष बेनीपुरी ने एक ऐसे विलक्षण चरित्र का उद्घाटन किया है जो मनुष्यता ,लोक संस्कृति और सामूहिक चेतना का प्रतिक है। वेश भूषा या ब्रह्य आडम्बरों से कोई सन्यासी है ,सन्यास का आधार जीवन के मानवीय सरोकार होते हैं . बालगोबिन भगत इसी आधार पर लेखक को सन्यासी लगते हैं . इस पाठ के माध्यम से सामाजिक रुढियों पर भी प्रहार किया गया है साथ ही हमें ग्रामीण जीवन की झाँकी भी दिखाई गयी है . बालगोबिन भगत ,कबीरपंथी एक गृहस्थ संत थे . उनकी उम्र साथ से ऊपर रही होगी . बाल पके थे . कपडे के नाम पर सिर्फ एक लंगोटी ,सर्दी के मौसम में एक काई कमली . रामनामी चन्दन और गले में तुलसी की माला पहनते थे . उनके घर में एक बेटा और बहु थे . वे खेतिहर गृहस्थ थे . झूठ ,छल प्रपंच से दूर रहते . दो टूक बाते करते . कबीर को अपना आदर्श मानते थे ,उन्ही के गीतों को गाते . अनाज पैदा पर कबीर पंथी मठ में ले जाकर दे आते और वहाँ से जो मिलता ,उसी से अपना गुजर बसर करते . उनका गायन सुनने के लिए गाँव वाले इकट्ठे हो जाते .

धान के रोपनी के समय में उनके गीत सुनकर बच्चे झूमने लगते ,मेंड पर खड़ी औरतें के होंठ काँप उठते थे .रोपनी करने वाले की अंगुलियाँ एक अजीब क्रम से चलने लगती थी . कार्तिक ,भादों ,सर्दी - गर्मी हर मौसम में बाल गोबिन सभी को अपने गायन से सीतल करते।

बालगोबिन भक्त आदमी थे। उनकी भक्ति साधना का चरम उत्कर्ष उस दिन देखने को मिला ,जिस दिन उनका एक मात्र पुत्र मरा , वे रुदन के बदले उत्सव मनाने को कहते थे। उनका मानना था कि आत्मा - परमात्मा को मिल गयी है। विरहणी अपनी प्रेमी से जा मिली। वे आगे एक समाज सुधारक के रूप में सामने आते हैं। अपनी पतोहू द्वारा अपने बेटे को मुखाग्नि दिलाते हैं। श्राद्ध कर्म के बाद ,बहु के भाई को बुलाकर उसकी दूसरी शादी करने को कहते हैं। बहु के बहुत मिन्नतें करने पर भी वे अटल रहते हैं। इस प्रकार वे विधवा विवाह के समर्थक हैं।

बालगोबिन की मौत उन्ही के व्यावकत्व के अनुरूप शांत रूप से हुई। अपना नित्य क्रिया करने वे गंगा स्नान करने जाते ,बुखार लम्बे उपवास करके मस्त रहते। लेकिन नेम ब्रत न छोड़ते। दो जून गीत ,स्नान ध्यान ,खेती बारी। अंत समय बीमार पड़कर वे परंपरा को प्राप्त हुए। भोर में उनका गीत न सुनाई पड़ा। लोगों ने जाकर देखा तो बालगोबिन्द स्वर्ग सिधार गए हैं।

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