Hindi, asked by DARKFIST, 1 year ago

summary of kafan by munshi premchand in hindi

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Answered by khushi03
438
इसका प्रारंभ इस प्रकार होता है- झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अंदर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव वेदना से पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों की रात थी, प्रकृत्ति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गाँव अंधकार में लय हो गया था। जब निसंग भाव से कहता है कि वह बचेगी नहीं तो माधव चिढ़कर उत्तर देता है कि मरना है तो जल्दी ही क्यों नहीं मर जाती-देखकर भी वह क्या कर लेगा। लगता है जैसे कहानी के प्रारंभ में ही बड़े सांकेतिक ढंग से प्रेमचंद इशारा कर रहे हैं और भाव का अँधकार में लय हो जाना मानो पूँजीवादी व्यवस्था का ही प्रगाढ़ होता हुआ अंधेरा है जो सारे मानवीय मूल्यों, सद्भाव और आत्मीयता को रौंदता हुआ निर्मम भाव से बढ़ता जा रहा है। इस औरत ने घर को एक व्यवस्था दी थी, पिसाई करके या घास छिलकर वह इन दोनों बगैरतों का दोजख भरती रही है। और आज ये दोनों इंतजार में है कि वह मर जाये, तो आराम से सोयें। आकाशवृत्ति पर जिंदा रहने वाले बाप-बेटे के लिए भुने हुए आलुओं की कीमत उस मरती हुई औरत से ज्यादा है। उनमें कोई भी इस डर से उसे देखने नहीं जाना चाहता कि उसके जाने पर दूसरा आदमी सारे आलू खा जायेगा। हलक और तालू जल जाने की चिंता किये बिना जिस तेजी से वे गर्म आलू खा रहे हैं उससे उनकी मारक गरीबी का अनुमान सहज ही हो जाता है। यह विसंगति कहानी की संपूर्ण संरचना के साथ विडंबनात्मक ढंग से जुड़ी हुई है। घीसू को बीस साल पहले हुई ठाकुर की बारात याद आती है-चटनी, राइता, तीन तरह के सूखे साग, एक रसेदार तरकारी, दही, चटनी, मिठाई। अब क्या बताऊँ कि उस भोज में क्या स्वाद मिला।...लोगों ने ऐसा खाया, किसी से पानी न पिया गया।..। यह वर्णन अपने ब्योरे में काफी आकर्षक ही नहीं बल्कि भोजन के प्रति पाठकीय संवेदना को धारदार बना देता है। इसके बाद प्रेमचंद लिखते हैं- और बुधिया अभी कराह रही थी। इस प्रकार ठाकुर की बारात का वर्णन अमानवीयता को ठोस बनाने में पूरी सहायता करता है।कफन एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था की कहानी है जो श्रम के प्रति आदमी में हतोत्साह पैदा करती है क्योंकि उस श्रम की कोई सार्थकता उसे नहीं दिखायी देती है। क्योंकि जिस समाज में रात-दिन मेहनत करने वालों की हालत उनकी हालत से बहुत-कुछ अच्छी नहीं थी और किसानों के मुकाबले में वे लोग, जो किसानों की दुर्बलताओं से लाभ उठाना जानते थे, कहीं ज्यादा संपन्न थे, वहाँ इस तरह की मनोवृत्ति का पैदा हो जाना कोई अचरज की बात न थी।... फिर भी उसे तक्सीन तो थी ही कि अगर वह फटेहाल है तो कम से कम उसे किसानों की-सी जी-तोड़ मेहनत तो नहीं करनी पड़ती। उसकी सरलता और निरीहता से दूसरे लोग बेज़ा फायदा तो नहीं उठाते। बीस साल तक यह व्यवस्था आदमी को भर पेट भोजन के बिना रखती है इसलिए आवश्यक नहीं कि अपने परिवार के ही एक सदस्य के मरने-जीने से ज्यादा चिंता उन्हें अपने पेट भरने की होती है। औरत के मर जाने पर कफन का चंदा हाथ में आने पर उनकी नियत बदलने लगती है, हल्के से कफन की बात पर दोनों एकमत हो जाते हैं कि लाश उठते-उठते रात हो जायेगी। रात को कफन कौन देखता है? कफन लाश के साथ जल ही तो जाता है। और फिर उस हल्के कफन को लिये बिना ही ये लोग उस कफन के चन्दे के पैसे को शराब, पूड़ियों, चटनी, अचार और कलेजियों पर खर्च कर देते हैं। अपने भोजन की तृप्ति से ही दोनों बुधिया की सद्गति की कल्पना कर लेते हैं-हमारी आत्मा प्रसन्न हो रही है तो क्या उसे सुख नहीं मिलेगा। जरूर से जरूर मिलेगा। भगवान तुम अंतर्यामी हो। उसे बैकुण्ठ ले जाना। अपनी आत्मा की प्रसन्नता पहले जरूरी है, संसार और भगवान की प्रसन्नता की कोई जरूरत है भी तो बाद में।अपनी उम्र के अनुरूप घीसू ज्यादा समझदार है। उसे मालूम है कि लोग कफन की व्यवस्था करेंगे-भले ही इस बार रूपया उनके हाथ में न आवे.नशे की हालत में माधव जब पत्नी के अथाह दुःख भोगने की सोचकर रोने लगता है तो घीसू उसे चुप कराता है-हमारे परंपरागत ज्ञान के सहारे कि मर कर वह मुक्त हो गयी है। और इस जंजाल से छूट गयी है। नशे में नाचते-गाते, उछलते-कूदते, सभी ओर से बेखबर और मदमस्त, वे वहीं गिर कर ढेर हो जाते हैं।
Answered by shishir303
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           प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी “कफन” का सारांश

‘मुंशी प्रेमचंद’ ने अपनी कहानी “कफन”  माध्यम से समाज में निर्धन वर्ग की दयनीय स्थिति   का खाका प्रस्तुत किया है। वो निर्धन वर्ग जिसे दो समय की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो जाता है, भूख और गरीबी के कारण उनमें अपने रिश्तों-नातों के प्रति संवेदना खत्म हो जाती है। लगातार बेरोजगार रहने के कारण उनमें काहिली और कामचोरी की आदत भी आ जाती है।

प्रेमचंद का इस कहानी से माध्यम से ये संदेश देने का प्रयत्न किया है कि जब तक समाज में व्याप्त असमानता खत्म नही होगी, गरीबों का शोषण बंद नही होगा, उनकी गरीबी दूर नही होगी, तब तक उनमें व्याप्त संवेदनहीनता का भाव खत्म नही होगा।

इस कहानी के दो मुख्य पात्र हैं, जो पिता पुत्र हैं। उनका नाम घीसू और माधव है। वे अपनी कमजोरी और आलस के कारण पूरे गांव में बदनाम हैं। वे बेहद निर्धन हैं और उनकी निर्धनता का एक कारण उनकी कामचोरी और आलस भी है। उनका यह काहिलपन समाज में व्याप्त असमानता के कारण उत्पन्न हुआ और उनकी इसी निर्धनता ने उन्हें बेहद संवेदनहीन भी बना दिया है। संवेदन हीनता का आलम ये है कि उन्हे केवल अपनी भूख और दारू की चिंता रहती है। घर कोई बीमारी इससे उन्हे कोई फर्क नही पड़ता। घीसू के बेटे माधव की पत्नी बुधिया प्रसव पीड़ा से छटपटा रही है, लेकिन माधव को अपनी पत्नी के की पीड़ा की कोई चिंता नही है। वो अपने बाप घीसू के साथ भुने हुए आलू खाने में व्यस्त है। क्योंकि वह आलू खाने का लोभ नहीं छोड़ पाता। उसे डर है कि यदि वह भुने हुए आलू छोड़कर अपनी बीवी को देखने जाएगा तो उसका बाप सारे आलू खा जाएगा। उनकी निर्धनता के कारण उन्हें कभी-कभी ही दो-तीन दिन में एक बार खाने को मिल पाता है। इस कारण जो भी उन्हें खाने का अवसर मिला है वह उस अवसर को चूकना नहीं चाहते, चाहे इसके लिए माधव की बीवी के प्राणों पर संकट ही क्यों ना आ पड़ा हो। उनकी भूख और गरीबी ने उन्हें बेहद संवेदनहीन बना दिया है। माधव की बीवी बुधिया अंदर प्रसव वेदना से चिल्लाती रह जाती है, तड़पती रह जाती है, लेकिन माधव पर कोई असर नही होता है। उसे पहले भुने हुए आलू खाने हैं। अंत में परिणाम ये होता है कि माधव की बीवी समय पर उचित उपचार न मिलने के कारण पीड़ा से अपने प्राण त्याग देती है।

संवेदनहीन पिता-पुत्र के पास बुधिया की लाश को पहनाने के लिये कफन खरीदने तक को पैसे नही हैं। गाँव वाले उनको कफन खरीदने के लिये पैसे की मदद करते है, पर उन दोनों की संवेदनाहीनता का आलम ये है कि वे लोग उन कफन के पैसों को भी शराब पर खर्च कर देते हैं।

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