summary of premchand's story poos ki ek raat in hindi of 150 words ?
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कहानी का सारांश –
कहानी ‘पूस की रात’ में हल्कू के माध्यम से कहानी कार ने भारतीय किसान की लाचारी का यथार्थ चित्रण किया है । बहुत साल पहले की बात है । उत्तर भारत के किसी एक गाँव में हल्कू नामक एक गरीब किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था । किसी की जमीन में खेती करता था । पर आमदानी कुछ भी नहीं थी । उसकी पत्नी खेती करना छोडकर और कहीं मजदूरी करने कहती थी ।
हल्कू के लगान के तीर पर दूसरों की खेती थी । खेते के मालिक का बकाया था । हल्कू ने अपनी पत्नी से तीन रुपए माँगे । पत्नी ने देने से इनकार किया, ये तीन रुपिए जाडे की रातों से बचने केलिए, कंबल खरीदने के लिये जमा करके रखे थे । मालिक के तगादे और गालियों से डरकर उसने वे तीन रुपिए निकलकर दे दिए । जमिंदार रुपिए लेकर चला गया ।
पूस मास आ गया । अंधेरी रात थी । कडाके की सर्दी थी । हल्कू अपने खेत के एक किनारे ऊख के पत्तों की छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर पडा था । अपनी पुरानी चादर ओडे ठिठुर रहा था । खाट के नीचे उसका पालतू कुत्ता जबरा पडा कुँ-कूँ कर रहा था । वह भी ठण्ड से ठिठुर रहा था । हल्कू को उसके हालत पर तरस आ रहा था । उसने जबरा से कहा-‘तू अब ठंड खा, मैं क्या करुँ ? यहाँ आने की क्या जरुरत थी ?’ हल्कू बहुत देर तक कुत्ते से बातें करता रहा । जब ठंड के कारण उसे नींद नहीं आई, तब कुत्ते को अपने गोद में सुला लिया । उसके शरीर के गर्मी से हल्कू को सुख मिला । कुछ घण्टे बीत गये । कोई आहट पाकर जबरा उठा और भौंकने लगा । उसे अपने कर्तव्य का मान था ।
हल्कू के खेत के समीप ही आमों का बाग था । बाग में पत्तियों का ढेर किया, पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड के लाया । उसे सुलगाया और अपने खेत में आकर वहाँ के पत्तियों को भी सुलगाया । हल्कू और कुत्ते दोनों आग तापने लगे । ठंड की असीम शक्ति पर विजय पाकर वह विजय गर्व को ह्रदय में छिपा न सकता था । वह कंबल ओढकर सो जाता है ।
उसी समय नजदीक में आहट पाकर जबरा भौंकने लगा । कई जानवारों का एक झुण्ड खेत में आया था । शायद नील गायों का झुण्ड था । उनके कूदने-दौडने की आवजें साफ कान में आ रही थी । फिर ऐसा मालूम हुआ कि वे खेत में चर रही हैं । जबरा तो भौंकता रहा । फिर भी हल्कू को उठने का मन नहीं हुआ ।
जबरा तो भौंकता। था । नील गायें खेत का सफाया किये डालती थी । और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था और धीरे-धीरे चादर ओढकर सो गया । उदर नील गायों ने रात भर चरकर खेती की सारी फसल को बरबाद किया था । सबेरे उसकी नींद खुली । मुन्नी ने उससे कहा-‘...तुम यहाँ आकर रम गये । और उधर सारा खेत सत्य नाश हो गया ।...’ दोनों खेत के पास आ गये । मुन्नी ने उदास होकर कहा-अब मजूरी करके पेट पालना पडेगा । हल्कू ने कहा-‘रात की ठण्ड में यहाँ सोना तो न पडेगा ।’ उसने यह बात बडी प्रसन्नता से कही, उसे ऐसी खेती करने से मजूरी करना बहुत हद तक आरामदायक है । मजूरी करने में झंझट तो नहीं हैं ।
कहानी ‘पूस की रात’ में हल्कू के माध्यम से कहानी कार ने भारतीय किसान की लाचारी का यथार्थ चित्रण किया है । बहुत साल पहले की बात है । उत्तर भारत के किसी एक गाँव में हल्कू नामक एक गरीब किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था । किसी की जमीन में खेती करता था । पर आमदानी कुछ भी नहीं थी । उसकी पत्नी खेती करना छोडकर और कहीं मजदूरी करने कहती थी ।
हल्कू के लगान के तीर पर दूसरों की खेती थी । खेते के मालिक का बकाया था । हल्कू ने अपनी पत्नी से तीन रुपए माँगे । पत्नी ने देने से इनकार किया, ये तीन रुपिए जाडे की रातों से बचने केलिए, कंबल खरीदने के लिये जमा करके रखे थे । मालिक के तगादे और गालियों से डरकर उसने वे तीन रुपिए निकलकर दे दिए । जमिंदार रुपिए लेकर चला गया ।
पूस मास आ गया । अंधेरी रात थी । कडाके की सर्दी थी । हल्कू अपने खेत के एक किनारे ऊख के पत्तों की छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर पडा था । अपनी पुरानी चादर ओडे ठिठुर रहा था । खाट के नीचे उसका पालतू कुत्ता जबरा पडा कुँ-कूँ कर रहा था । वह भी ठण्ड से ठिठुर रहा था । हल्कू को उसके हालत पर तरस आ रहा था । उसने जबरा से कहा-‘तू अब ठंड खा, मैं क्या करुँ ? यहाँ आने की क्या जरुरत थी ?’ हल्कू बहुत देर तक कुत्ते से बातें करता रहा । जब ठंड के कारण उसे नींद नहीं आई, तब कुत्ते को अपने गोद में सुला लिया । उसके शरीर के गर्मी से हल्कू को सुख मिला । कुछ घण्टे बीत गये । कोई आहट पाकर जबरा उठा और भौंकने लगा । उसे अपने कर्तव्य का मान था ।
हल्कू के खेत के समीप ही आमों का बाग था । बाग में पत्तियों का ढेर किया, पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड के लाया । उसे सुलगाया और अपने खेत में आकर वहाँ के पत्तियों को भी सुलगाया । हल्कू और कुत्ते दोनों आग तापने लगे । ठंड की असीम शक्ति पर विजय पाकर वह विजय गर्व को ह्रदय में छिपा न सकता था । वह कंबल ओढकर सो जाता है ।
उसी समय नजदीक में आहट पाकर जबरा भौंकने लगा । कई जानवारों का एक झुण्ड खेत में आया था । शायद नील गायों का झुण्ड था । उनके कूदने-दौडने की आवजें साफ कान में आ रही थी । फिर ऐसा मालूम हुआ कि वे खेत में चर रही हैं । जबरा तो भौंकता रहा । फिर भी हल्कू को उठने का मन नहीं हुआ ।
जबरा तो भौंकता। था । नील गायें खेत का सफाया किये डालती थी । और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था और धीरे-धीरे चादर ओढकर सो गया । उदर नील गायों ने रात भर चरकर खेती की सारी फसल को बरबाद किया था । सबेरे उसकी नींद खुली । मुन्नी ने उससे कहा-‘...तुम यहाँ आकर रम गये । और उधर सारा खेत सत्य नाश हो गया ।...’ दोनों खेत के पास आ गये । मुन्नी ने उदास होकर कहा-अब मजूरी करके पेट पालना पडेगा । हल्कू ने कहा-‘रात की ठण्ड में यहाँ सोना तो न पडेगा ।’ उसने यह बात बडी प्रसन्नता से कही, उसे ऐसी खेती करने से मजूरी करना बहुत हद तक आरामदायक है । मजूरी करने में झंझट तो नहीं हैं ।
akshatvadera03:
thank you yaar
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