Hindi, asked by anshulg2208, 1 year ago

summary of premchand story dhikkar

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Answered by shiv7020
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धिक्‍कार

अनाथ और विधवा मानी के लिए जीवन में अब रोने के सिवा दूसरा अवलम्‍ब न था । वह पांच वर्ष की थी, जब पिता का देहांत हो गया। माता ने किसी तरह उसका पालन किया । सोलह वर्ष की अवस्‍था मकं मुहल्‍लेवालों की मदद से उसका विवाह भी हो गया पर साल के अंदर ही माता और ‍पति दोनों विदा हो गए। इस विपति में उसे उपने चचा वंशीधर के सिवा और कोई नज़र न आया, जो उसे आश्रय देता । वंशीधर ने अब तक जो व्‍यवहार किया था, उससे यह आशा न हो सकती थी कि वहां वह शांति के साथ रह सकेगी पर वह सब कुछ सहने और सब कुछ करने को तैयार थी । वह गाली, झिड़की, मारपीट सब सह लेगी, कोई उस पर संदेह तो न करेगा, उस पर मिथ्‍या लांछन तो न लगेगा, शोहदों और लुच्‍चों से तो उसकी रक्षा होगी । वंशीधर को कुल मर्यादा की कुछ चिन्‍ता हुई । मानी की वाचना को अस्‍वीकार न कर सके ।
लेकिन दो चार महीने में ही मानी को मालूम हो गया कि इस घर में बहुत दिनों तक उसका निबाह न होगा । वह घर का सारा काम करती, इशारों पर नाचती, सबको खुश रखने की कोशिश करती पर न जाने क्‍यों चचा और चची दोनों उससे जलते रहते । उसके आते ही महरी अलग कर दी गई । नहलाने-धुलाने के लिए एक लौंडा था उसे भी जवाब दे दिया गया पर मानी से इतना उबार होने पर भी चचा और चची न जाने क्‍यों उससे मुंह फुलाए रहते । कभी चचा घुड़कियां जमाते, कभी चची कोसती, यहां तक कि उसकी चचेरी बहन ललिता भी बात-बात पर उसे गालियां देती । घर-भर में केवल उसक चचेरे भाई गोकुल ही को उससे सहानुभूति थी । उसी की बातों में कुछ स्‍नेह का परिचय मिलता था । वह उपनी माता का स्‍वभाव जानता था। अगर वह उसे समझाने की चेष्‍टा करता, या खुल्‍लमखुल्‍ला मानी का पक्ष लेता, तो मानी को एक घड़ी घर में रहना कठिन हो जाता, इसलिए उसकी सहानुभुति मानी ही को दिलासा देने तक रह जाती थी । वह कहता-बहन, मुझे कहीं नौकर हो जाने दो, ‍फिर तुम्‍हारे कष्‍टों का अंत हो जाएगा । तब देखूंगा, कौन तुम्‍हें तिरछी आंखों से देखता है । जब तक पढ़ता हूं, तभी तक तुम्‍हारे बुरे दिन हैं । मानी यह स्‍नेह में डूबी हुई बात सुनकर पुलकित हो जाती और उसका रोआं-रोआं गोकुल को आशीर्वाद देने लगता 

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