Summary of राम लक्ष्मण परशुराम संवाद
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राम – लक्ष्मण – परशुराम संवाद का
परशुराम: – शिव के धनुष के टूटने के बाद परशुराम जी सुनकर परशुराम जी और क्रोधित हो जाते हैं| और कहते है उसने इस धनुष को तोड़कर मुझे युद्ध के लिए ललकारा है इसलिए वो मेरे सामने आये।
राम – लक्ष्मण- परशुराम जी यह बात सुन के लक्ष्मण उनका मज़ाक उड़ाते हुए कहते है, हे मुनिवर हम बचपन में खेल खेल में ऐसे कई धनुष तोड़ दिए तब तो आप क्रोधित नहीं हुए।
परशुराम- हे राजा के बेटे तुम काल के वश में हो तुम में अहंकार समाया हुआ है और इसी कारण वश तुम्हें यह नहीं पता चल पा रहा है की तुम क्या बोल रहे हो। क्या तुम्हें बच्चपन में तोड़े गए धनुष एवं शिवजी के इस धनुष में कोई अंतर नहीं दिख रहा जो तुम इनकी तुलना कर रहे हो।
राम – लक्ष्मण- परशुराम जी यह बात सुन के लक्ष्मण कहते है हमे तो सारे धनुष एक जैसे ही दिखाई देते हैं, किसी में कोई फर्क नजर नहीं आता। जो आप इतना क्रोधित हो रहे हो।
परशुराम- परशुराम लक्ष्मण के इन बातों को सुन के और क्रोधित हो जाते है , और कहते है हे मुर्ख लक्ष्मण लगता है तुझे मेरे वयक्तित्व के बारे में नहीं जानते हो। मैं कोई साधारण मुनि नहीं हूं|
राम – लक्ष्मण- परशुराम जी यह बात सुन के लक्ष्मण कहते है मुस्कुराते हुए बड़े प्रेमपूर्वक स्वर से कहते है मैं आपकी बातों से डरने वाला नहीं हूँ|
परशुराम- यह सुनकर परशुराम जी विश्वामित्र से कहते हैं की तुम जानते हो की मैं कितना कठोर एवं निर्दयी हूँ।
राम – लक्ष्मण- लक्ष्मण के ये कठोर वचन सुनकर परशुराम अपने क्रोध के आग में जलने लगते हैं| परशुराम जी को इस अग्नि में जलता देखकर श्री राम ने अपने सीतल वचनों से उनकी अग्नि को सांत किया।