surdas ke pad ) mero man anat ‐ ‐ ‐ ‐ haro kon duao . sandarbh ‐ Prasang or vakya likhiyeplease help
Answers
विनय :-
मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे।
जैसे उड़ि जहाज की पंछि, फिरि जहाज पर आवै॥
कमल-नैन को छाँड़ि महातम, और देव को ध्यावै।
परम गंग को छाँड़ि पियसो, दुरमति कूप खनावै॥
जिहिं मधुकर अंबुज-रस चाख्यो, क्यों करील-फल खावै।
'सूरदास' प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै॥
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संदर्भ :-
यह पंक्ति सूरसागर के प्रथम स्कन्ध राग देवगंधर से ली गयी है और इसके रचयिता सूरदास है । यह हमारी पाठ्यपुस्तक के पाठ सूरदास के पद से ली गई है।
प्रसंग :-
इन पंक्तियों में कवि अपनी ईश्वर के प्रति भक्ति का वणर्न किया है , औऱ बताया है की ईश्वर भक्ति से बढ़कर कुछ नही है। ईश्वर भक्ति से बढ़कर कुछ नही होता ।
व्याख्या :-
यहां भक्त की भगवान के प्रति मान्यता और श्रद्धा को दर्शाया है। और भगवान की ऊँची अवस्था दिखाई है। हमारी आत्मा ईश्वर के स्वरूप है । अर्थात भक्त के लिए ईश्वर ही सब कुछ है । भक्त को ईश्वर के पास ही शांति का आभास होता है । ईश्वर के अलावा कहीं सुख शांति नहीं है । जो ईश्वर को छोड़कर इधर उधर भटकता वह मूर्ख है । कमल का रस चखने वाला भौंरा करेले का रस नहीं चखता। कामधेनु त्याग कर कौन मूर्ख बकरी दुहेगा ।
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