surdas ke pad summary with explanation
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ऊधौ तुम हो अति बड़भागी ..........
........ गुर चांटी ज्यों पागी।
इस पद में सूरदास जी ने गोपियों का उद्धव के साथ संवाद बताया है। गोपियाँ उद्धव के ज्ञान मार्ग और योग साधना को अस्वीकार करती हैं। वे उनकी प्रेम संबंधी उदासीनता पर व्यंग्य करती हैं और भक्ति मार्ग में अपनी आस्था को व्यक्त करती हैं। वे कहती हैं कि - उद्धव जी आप बड़े भाग्यशाली हैं जो प्रेम के बंधन में नहीं बंधे हैं और न आपके मन में किसी के प्रति प्रेम जगा है। जिस प्रकार जल में रहने वाले कमल के पत्ते पर जल की एक भी बूँद नहीं ठहरती, जिस तरह तेल की गगरी को जल में भिगोने पर पानी की बूँद उसपर नहीं ठहर पाती है, उसी प्रकार आप श्री कृष्ण रूपी प्रेम की नदी के साथ रहते हुए भी, उसमें स्नान करने की बात तो दूर, आप पर उसकी एक छींट भी नहीं पड़ी। अतः आप भाग्यशाली नहीं हैं क्योंकि हम लोग तो श्री कृष्ण के प्रेम की नदी में डूबते और उतरते रहते हैं। वे कहती हैं कि - हे उद्धव जी हमारी दशा तो उस चींटी के समान है जो गुड़ के प्रति आकर्षित होकर उसके पास जाती है और वहीँ पर चिपक जाती है। वह चाहकर भी अपने को अलग नहीं कर पाती है। व अंतिम साँस तक वहीँ चिपकी रहती है।
अर्थात निर्गुण की उपासना के प्रति उद्धव की अनुरक्ति पर व्यंग्य करते हुए गोपियाँ कहती हैं कि वे उनके समान संसार से विरक्त नहीं हो सकतीं हैं। वे सांसारिक हैं और एक दूसरे से प्रेम करती हैं। उनके मन में कृष्ण की भक्ति और अनुरक्ति है। कृष्ण से अलग उनकी कोई पहचान नहीं है। उनके जैसे लोगों के लिए ज्ञान मार्ग कठिन है।
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