swantrata andolan me mahilao ki kya baghidari rahi hai
Answers
Answered by
0
hello mate
विजयलक्ष्मी पंडित : एक संपन्न, कुलीन घराने से ताल्लुक रखने वाली और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी आजादी कीNDNDलड़ाई में शामिल थीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। वह एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थीं और विदेशों में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं। वह संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं। वह स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं, जिन्होंने मास्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
अरुणा आसफ अली : हरियाणा के एक रूढि़वादी बंगाली परिवार से आने वाली अरुणा आसफ अली ने परिवार और स्त्रीत्व के तमाम बंधनोंNDNDको अस्वीकार करते हुए जंग-ए-आजादी को अपनी कर्मभूमि के रूप में स्वीकार किया। 1930 में नमक सत्याग्रह से उनके राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत हुई। अँग्रेज हुकूमत ने उन्हें एक साल के लिए जेल में कैद कर दिया। बाद में गाँधी-इर्विंग समझौते के बाद जब सत्याग्रह के कैदियों को रिहा किया जा रहा था, तब भी उन्हें रिहा नहीं किया गया।
कस्तूरबा गाँधी : गाँधी ने बा के बारे में खुद स्वीकार किया था कि उनकी दृढ़ता औरसाहस खुद गाँधीजी से भी उन्नत थे। महात्मा गाँधी कीऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 9 अगस्त, 1942 को अरुणा आसफ अली ने गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय झंडा फहराकर आंदोलन की अगुवाई की। वह एक प्रबल राष्ट्रवादी और आंदोलनकर्मी थीं। उन्होंने लंबे समय तक भूमिगत रहकर काम किया। सरकार ने उनकी सारी संपत्ति जब्त कर ली और उन्हें पकड़ने वाले के लिए 5000 रु. का ईनाम भी रखा। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की मासिक पत्रिका ‘इंकलाब’ का भी संपादन किया। 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
गोखले से एक ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। दक्षिण अफ्रीका से हिंदुस्तान आने के बाद गाँधीजी पर भी शुरू-शुरू में गोखले का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। सरोजिनी नायडू ने खिलाफत आंदोलन की बागडोर सँभाली।
सिस्टर निवेदिता: उनका वास्तविक नाम मारग्रेट नोबल था। उस दौर में बहुत-सी विदेशी महिलाओं को हिंदुस्तान के व्यक्तित्वों और आजादीNDNDकी लड़ाई ने प्रभावित किया था। स्वामी विवेकानंद के जीवन और दर्शन के प्रभाव में जनवरी, 1898 में वह हिंदुस्तान आईं। भारत स्त्री-जीवन की उदात्तता उन्हें आकर्षित करती थी, लेकिन उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा और उनके बौद्धिक उत्थान की जरूरत को महसूस किया और इसके लिए बहुत बड़े पैमाने पर काम भी किया। प्लेग की महामारी के दौरान उन्होंने पूरी शिद्दत से रोगियों की सेवा की और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अग्रणी भूमिका निभाई। भारतीय इतिहास और दर्शन पर उनका बहुत महत्वपूर्ण लेखन है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों की बेहतरी की प्रेरणाओं से संचालित है।
मीरा बेन: लंदन के एक सैन्य अधिकारी की बेटी मैडलिन स्लेड गाँधी के व्यक्तित्व के जादू में बँधी साम समंदर पार काले लोगों के देश हिंदुस्तान चली आई और फिर यहीं की होकर रह गईं। गाँधी ने उन्हें नाम दिया था - मीरा बेन। मीरा बेन सादी धोती पहनती, सूत कातती, गाँव-गाँव घूमती। वह गोरी नस्ल की अँग्रेज थीं, लेकिन हिंदुस्तान की आजादी के पक्ष में थी। उन्होंने जरूर इस देश की धरती पर जन्म नहीं लिया था, लेकिन वह सही मायनों में हिंदुस्तानी थीं। गाँधी का अपनी इस विदेशी पुत्री पर विशेष अनुराग था।
कमला नेहरू: कमला जब ब्याहकर इलाहाबाद आईं तो एक सामान्य, कमउम्र नवेली ब्याहता भर थीं। सीधी-सादी हिंदुस्तानी लड़की, लेकिनNDNDवक्त पड़ने पर यही कोमल बहू लौह स्त्री साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अँग्रेजों का सामना करती है, भूख हड़ताल करती है और जेल की पथरीली धरती पर सोती है। नेहरू के साथ-साथ कमला नेहरू और फिर इंदिरा की भी सारी प्रेरणाओं में देश की आजादी ही सर्वोपरि थी। असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर शिरकत की। कमला नेहरू के आखिरी दिन मुश्किलों से भरे थे। अस्पताल में बीमार कमला की जब स्विटजरलैंड में टीबी से मौत हुई, उस समय भी नेहरू जेल में ही थे।
मैडम भीकाजी कामा: पारसी यूँ तो हिंदुस्तानी थे, लेकिन गोरी चमड़ी और अँग्रेजी शिक्षा के कारण अँग्रेजों के ज्यादा निकट थे। ऐसे ही एकNDNDपारसी परिवार में जन्मी भीकाजी कामा पर अँग्रेजी शिक्षा के बावजूद अँग्रेजियत का कोई असर नहीं था। वह एक पक्की राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं। स्टुटगार्ड जर्मनी में उन्होंने देश की आजादी पर कहा था, ‘हिंदुस्तानी की आजादी का परचम लहरा रहा है। अँग्रेजों, उसे सलाम करो। यह झंडा हिंदुस्तान के लाखों जवानों के रक्त से सींचा गया है। सज्जनों, मैं आपसे अपील करती हूँ कि उठें और भारत की आजादी के प्रतीक इस झंडे को सलाम करें।’ फिरंगी भीकाजी कामा के क्रिया-कलापों से भयभीत थे और उन्होंने उनकी हत्या के प्रयास भी किए। पर देश-प्रेम से उन्नत भाल झुकता है भला। भीकाजी कामा का नाम आज भी उसी गर्व के साथ हमारे दिलों में उन्नत है।
इंदिरा गाँधी: तमाम सुख-सुविधाओं में पली जवाहरलाल नेहरू की बेटी और फिर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के संघर्ष, आजादी की लड़ाई
विजयलक्ष्मी पंडित : एक संपन्न, कुलीन घराने से ताल्लुक रखने वाली और जवाहरलाल नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित भी आजादी कीNDNDलड़ाई में शामिल थीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण उन्हें जेल में बंद किया गया था। वह एक पढ़ी-लिखी और प्रबुद्ध महिला थीं और विदेशों में आयोजित विभिन्न सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। भारत के राजनीतिक इतिहास में वह पहली महिला मंत्री थीं। वह संयुक्त राष्ट्र की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष थीं। वह स्वतंत्र भारत की पहली महिला राजदूत थीं, जिन्होंने मास्को, लंदन और वॉशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
अरुणा आसफ अली : हरियाणा के एक रूढि़वादी बंगाली परिवार से आने वाली अरुणा आसफ अली ने परिवार और स्त्रीत्व के तमाम बंधनोंNDNDको अस्वीकार करते हुए जंग-ए-आजादी को अपनी कर्मभूमि के रूप में स्वीकार किया। 1930 में नमक सत्याग्रह से उनके राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत हुई। अँग्रेज हुकूमत ने उन्हें एक साल के लिए जेल में कैद कर दिया। बाद में गाँधी-इर्विंग समझौते के बाद जब सत्याग्रह के कैदियों को रिहा किया जा रहा था, तब भी उन्हें रिहा नहीं किया गया।
कस्तूरबा गाँधी : गाँधी ने बा के बारे में खुद स्वीकार किया था कि उनकी दृढ़ता औरसाहस खुद गाँधीजी से भी उन्नत थे। महात्मा गाँधी कीऐतिहासिक भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 9 अगस्त, 1942 को अरुणा आसफ अली ने गोवालिया टैंक मैदान में राष्ट्रीय झंडा फहराकर आंदोलन की अगुवाई की। वह एक प्रबल राष्ट्रवादी और आंदोलनकर्मी थीं। उन्होंने लंबे समय तक भूमिगत रहकर काम किया। सरकार ने उनकी सारी संपत्ति जब्त कर ली और उन्हें पकड़ने वाले के लिए 5000 रु. का ईनाम भी रखा। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की मासिक पत्रिका ‘इंकलाब’ का भी संपादन किया। 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
गोखले से एक ऐतिहासिक मुलाकात ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। दक्षिण अफ्रीका से हिंदुस्तान आने के बाद गाँधीजी पर भी शुरू-शुरू में गोखले का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। सरोजिनी नायडू ने खिलाफत आंदोलन की बागडोर सँभाली।
सिस्टर निवेदिता: उनका वास्तविक नाम मारग्रेट नोबल था। उस दौर में बहुत-सी विदेशी महिलाओं को हिंदुस्तान के व्यक्तित्वों और आजादीNDNDकी लड़ाई ने प्रभावित किया था। स्वामी विवेकानंद के जीवन और दर्शन के प्रभाव में जनवरी, 1898 में वह हिंदुस्तान आईं। भारत स्त्री-जीवन की उदात्तता उन्हें आकर्षित करती थी, लेकिन उन्होंने स्त्रियों की शिक्षा और उनके बौद्धिक उत्थान की जरूरत को महसूस किया और इसके लिए बहुत बड़े पैमाने पर काम भी किया। प्लेग की महामारी के दौरान उन्होंने पूरी शिद्दत से रोगियों की सेवा की और भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भी अग्रणी भूमिका निभाई। भारतीय इतिहास और दर्शन पर उनका बहुत महत्वपूर्ण लेखन है, जो भारतीय उपमहाद्वीप में स्त्रियों की बेहतरी की प्रेरणाओं से संचालित है।
मीरा बेन: लंदन के एक सैन्य अधिकारी की बेटी मैडलिन स्लेड गाँधी के व्यक्तित्व के जादू में बँधी साम समंदर पार काले लोगों के देश हिंदुस्तान चली आई और फिर यहीं की होकर रह गईं। गाँधी ने उन्हें नाम दिया था - मीरा बेन। मीरा बेन सादी धोती पहनती, सूत कातती, गाँव-गाँव घूमती। वह गोरी नस्ल की अँग्रेज थीं, लेकिन हिंदुस्तान की आजादी के पक्ष में थी। उन्होंने जरूर इस देश की धरती पर जन्म नहीं लिया था, लेकिन वह सही मायनों में हिंदुस्तानी थीं। गाँधी का अपनी इस विदेशी पुत्री पर विशेष अनुराग था।
कमला नेहरू: कमला जब ब्याहकर इलाहाबाद आईं तो एक सामान्य, कमउम्र नवेली ब्याहता भर थीं। सीधी-सादी हिंदुस्तानी लड़की, लेकिनNDNDवक्त पड़ने पर यही कोमल बहू लौह स्त्री साबित हुई, जो धरने-जुलूस में अँग्रेजों का सामना करती है, भूख हड़ताल करती है और जेल की पथरीली धरती पर सोती है। नेहरू के साथ-साथ कमला नेहरू और फिर इंदिरा की भी सारी प्रेरणाओं में देश की आजादी ही सर्वोपरि थी। असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने बढ़-चढ़कर शिरकत की। कमला नेहरू के आखिरी दिन मुश्किलों से भरे थे। अस्पताल में बीमार कमला की जब स्विटजरलैंड में टीबी से मौत हुई, उस समय भी नेहरू जेल में ही थे।
मैडम भीकाजी कामा: पारसी यूँ तो हिंदुस्तानी थे, लेकिन गोरी चमड़ी और अँग्रेजी शिक्षा के कारण अँग्रेजों के ज्यादा निकट थे। ऐसे ही एकNDNDपारसी परिवार में जन्मी भीकाजी कामा पर अँग्रेजी शिक्षा के बावजूद अँग्रेजियत का कोई असर नहीं था। वह एक पक्की राष्ट्रवादी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थीं। स्टुटगार्ड जर्मनी में उन्होंने देश की आजादी पर कहा था, ‘हिंदुस्तानी की आजादी का परचम लहरा रहा है। अँग्रेजों, उसे सलाम करो। यह झंडा हिंदुस्तान के लाखों जवानों के रक्त से सींचा गया है। सज्जनों, मैं आपसे अपील करती हूँ कि उठें और भारत की आजादी के प्रतीक इस झंडे को सलाम करें।’ फिरंगी भीकाजी कामा के क्रिया-कलापों से भयभीत थे और उन्होंने उनकी हत्या के प्रयास भी किए। पर देश-प्रेम से उन्नत भाल झुकता है भला। भीकाजी कामा का नाम आज भी उसी गर्व के साथ हमारे दिलों में उन्नत है।
इंदिरा गाँधी: तमाम सुख-सुविधाओं में पली जवाहरलाल नेहरू की बेटी और फिर देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के संघर्ष, आजादी की लड़ाई
quest2:
you are getting me wrong i'm not getting angry . politely saying .
Answered by
0
Explanation:
ajadi dilane me unka bahut bada yogdan tha
unki hi wajah se hame aajadi mili
Similar questions
English,
6 months ago
Computer Science,
6 months ago
Chemistry,
11 months ago
Biology,
1 year ago
Social Sciences,
1 year ago