तिब्बत की ज़मीन बहुत अधिक छोटे – बड़े जागीरदारों में बंटी है | इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों के हाथ में है | अपनी – अपनी जागीर में हरेक जागीरदार
कुछ खेती खुद भी कराता है, जिसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते है | खेती का
इंतजाम देखने केलिए वहां कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों केलिए राजा से कम नहीं होता |यहां एक अच्छा मंदिर था, जिसमें कंजूर (बुद्धवचन – अनुवाद ) की हस्तलिखित 103 पोथियों रखी हुई थी, मेरा आसन भी वहीं लगा | वह मोटे कागज़ अच्छे अक्षरों में लिखी हुई थी | सुमति ने फिर आसपास अपने यजमानों
के पास जाने के बारे में पूछा, में अब पुस्तकों के भीतर था, इसलिए मैंने उन्हें जाने
केलिए कह दिया |
1.तिब्बत में जागीरों का अधिकतर भाग किसके पास है ?
2.तिब्बत में खेती की व्यवस्था कौन देखता है ?
3.कंजूर से क्या अभिप्राय है ?
4.लेखक का आसन कहां लगाया गया ?
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