Hindi, asked by vkggn2021, 8 months ago

tell a story on budhiya ki vyatha in hindi quickly​

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Answered by arjunv94631
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Answer:

Explanation:

मिल्खा सिंह ने यूँ तो एथियाई खेलो में चार स्वर्ण और राष्ट्रमंडल खेलों में एक स्वर्ण पदक जीता है, लेकिन जब भी उनका ज़िक्र आता है, उनकी जीतों से कहीं ज़्यादा, उनकी एक हार की चर्चा होती है. यूँ तो ओलंपिक खेलों की व्यक्तिगत स्पर्धाओं में अब तक भारत को कई पदक मिल चुके हैं.

केडी जाधव, लिएंडर पेस, राज्यवर्धन सिंह राठौर और अभिनव बिंद्रा जैसे कई लोग भारत को पदक दिलवा चुके हैं. लेकिन रोम ओलंपिक में मिल्खा सिंह के पदक चूकने की कहानी को इन सबसे कहीं ज़्यादा शिद्दत से याद किया जाता है. शायद इसकी वजह यह कि दिल टूटने की कहानियाँ, जीत की कहानियों से कहीं ज़्यादा ताक़तवर होती हैं.

रोम जाने से दो साल पहले से ही मिल्खा सिंह को विश्व स्तर का एथलीट माना जाने लगा था जब उन्होंने कार्डिफ़ राष्ट्रमंडल खेलों में तत्कालीन विश्व रिकॉर्ड होल्डर मेल स्पेंस को हरा कर स्वर्ण पदक जीता था. रोम में भारतीय एथलेटिक्स टीम के उप कोच वेंस रील को पूरा विश्वास था कि मिल्खा इस बार पदक ज़रूर लाएंगे, शायद स्वर्ण पदक भी ले आएं. उनकी इस उम्मीद के पीछे कुछ कारण भी थे.

Answered by dcharan1150
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बूढ़ीया की व्यथा |

Explanation:

जिंदगी के भार से अब मेँ सेवा निवृत हो चुकी हूँ, इसलिए समाज मुझे एक बूढ़ीया कहती हैं | वैसे मैंने अपने समय में जिंदगी की कई सारे रंग देख चुकी हूँ | कई उतार और चढ़ाव आयें हैं मेरे इस 70 साल की सफर में जिसका मैंने डट कर भी सामना किया हैं | परंतु अब जब में लगभग मेरे जिंदगी की आखिरी अवस्था में हूँ, तो शरीर का बल पूर्ण रूप से क्षीण हो चुका हैं |

न ही किसी के सहारे के बिना चल पाती हूँ और न ही कहीं जा पाती हूँ | नहाने के लिए भी मुझे किसी अन्य की सहायता चाहिए होती हैं | पहले की भांति  मुझे और कोई ज्यादा वर्चस्व नहीं दे रहा हैं | हर कोई मुझे अपना बोझ समझ रहे हैं | जिस हाथों ने इन बच्चों को जिंदगी भर पालने में बिता दिया उन्हीं हाथों को अब छूने के लिए भी इनको शर्म आता हैं | अब लगता हैं की इस जिंदगी से कब मुक्ति मिलेगी और कब मेरा इस उद्धार होगा | ऐसे समाज में और जीने की आश मेरे पास नहीं हैं |

बस इतनी ही है एक बूढ़ीया की व्यथा |

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