दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
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प्रशन :- दिल के भोलेपन के साथ-साथ अक्खड़पन और जुझारूपन को भी बचाने की आवश्यकता पर क्यों बल दिया गया है?
उत्तर :- दिल के भोलेपन’ में सहजता, सच्चाई और ईमानदारी का है। ‘अक्खड़पन’ से अभिप्राय अपनी बात पर दृढ़ रहने का भाव है और ‘जुझारूपन’ से तात्पर्य संघर्षशीलता से है।
कवयित्री कहती है कि हमेशा दिल का भोलापन ठीक नहीं होता है क्यूंकि भोलेपन का फायदा उठाने वालों के साथ अक्खड़पन भी दिखाना जरुरी होता है और कर्म की पूर्ति के लिए जुझारूपन भी आवश्यक होता है तथा इसलिए कवयित्री ने अपने समाज की इन तीन प्रमुख विशेषताओं को बचाने की आवश्यकता पर बल दिया है।
दिल के भोलेपन के साथ साथ अक्खड़पन
तथा झुझारू पन को बचाने की आवश्यकता पर जोर दिया गया है कारण कवियित्री चाहती है कि संथाल क्षेत्र के लोगों को अपनी मूल पहचान नहीं भूलनी चाहिए।
• कवियित्री ने इस कविता के माध्यम से संथाल क्षेत्र के आदिवासियों की जीवनी का परिचय दिया है।
• कवियित्री ने यह आभास किया है कि शहरी क्षेत्रों की आधुनिकता का प्रभाव संथाली लोगो पर भी पड़ रहा है।
• कवियित्री चाहती है संथाली लोगो को अपनी सांस्कृतिक विशेषताएं बचाए रखने चाहिए।
• कवियित्री कहती है कि क्षेत्र कि प्रकृति , रहन - सहन, अक्खड़ता, नाच गाना, भोलापन , झारखंडी भाषा आदि को शहरी प्रभाव से दूर रखना चाहिए।
• यही कवियित्री का उद्देश्य है।