दूसरों के काम आने में ही जीवन का सच्चा सुख निहित है। इस बारे में अपने विचार बताइए
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वस्तुतः प्रकृति की प्रत्येक संरचना कुछ न कुछ प्रदान कर रही है फिर हम तो मनुष्य हैं |प्रकृति की सर्वश्रेष्ठ रचना जिसके पास एक संतुलित मस्तिष्क भी है | जिस प्रकार पेड़, पौधे, वायु,सूर्य, धरती, बादल, नभचर, थलचर जलचर सभी किसी न किसी तरह से इस प्रकृति को कुछ न कुछ अवश्य प्रदान कर रहे हैं | हमें भी अपनी क्षमताओं के अनुरूप दूसरों के काम आना चाहिए | मानव सेवा को ईश्वर की सेवा के तुल्य बताया गया है | वास्तव में वही मनुष्य श्रेष्ठ है जो दूसरों के लिए त्याग और बलिदान करता है |
निजी स्वार्थों से ऊपर उठकर जो सबके हित के बारे में सोचता है वही व्यक्ति वंदनीय है | यदि किसी कमजोर व्यक्ति को जीवन में सहारे की आवश्यकता पड़े तो हमें उसकी मदद अवश्य करनी चाहिए यही मानवता की पुकार है | उदार चित वाला पुरुष या व्यक्ति ऐसे लोगों की सहायता करने में कभी पीछे नहीं हटता और प्रकृति भी तो हमें यही सिखाती है कि पेड़ अपने फल खाते नहीं सरोवर अपना पानी पीते नहीं परंतु दूसरों के भले के लिए उन्होंने अपनी संपत्तियों को लुटाया है |
हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है " परोपकार: पुण्याय पापाय् परपीडनम्" | अर्थात दूसरो का भला करने से बढ़कर कोई पुण्य नहीं और दूसरों को पीड़ा पहुचाने से बढ़कर कोई पाप नहीं " | मनुष्य को अपनी संपूर्ण क्षमताओं के साथ प्रत्येक का कल्याण करने के लिए सदैव एवं सतत तत्पर रहना चाहिए तभी वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी होगा |
विश्व के सभी महापुरुषों ने भी दुखी और पीड़ितों को सहायता पहुंचाई तथा उनकी सेवा करके मानवता की भरसक मिसाले प्रस्तुत की है वे हमारे प्रेरणास्रोत है जो हमें यही सिखाते हैं | वैसे भी शरीर मरणधर्मा है अस्तु जीते -जी किसी के काम आ जाए तो ही जीवन सार्थक है | इससे हमे आत्म संतुष्टि भी प्राप्त होती है यही जीवन का सच्चा सुख है |