दहेज पीडित स्री की आत्मकथा
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भारत में दहेज प्रथा काफी पुरानी है, सदियों से चली आ रही इस प्रथा को अब लोगो ने अपना धंधा बना लिया है. माता पिता कन्या के विवाह के समय भेट स्वरूप धन-सम्पत्ति, गाय आदि चीजे कन्या को देते थे.
माता पिता के द्वार दिए जाने वाले दहेज़ के बारे में लड़के वालो को अंदाजा नहीं होता था और न ही वह अपनी और से किसी तरह की कोई मांग करते थे.
बदलता समय इस रीतिरिवाज को भी बदलता गया कन्या की शादी में स्वेच्छा से दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे लड़के वालो का एक तरह से अधिकार बनने लग गया. आज के समय में तो कई व्यक्ति दहेज़ को अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मानने लग गए हैं.
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भारत में दहेज प्रथा काफी पुरानी है, सदियों से चली आ रही इस प्रथा को अब लोगो ने अपना धंधा बना लिया है. माता पिता कन्या के विवाह के समय भेट स्वरूप धन-सम्पत्ति, गाय आदि चीजे कन्या को देते थे.
माता पिता के द्वार दिए जाने वाले दहेज़ के बारे में लड़के वालो को अंदाजा नहीं होता था और न ही वह अपनी और से किसी तरह की कोई मांग करते थे.
बदलता समय इस रीतिरिवाज को भी बदलता गया कन्या की शादी में स्वेच्छा से दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे लड़के वालो का एक तरह से अधिकार बनने लग गया. आज के समय में तो कई व्यक्ति दहेज़ को अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मानने लग गए हैं.
माता पिता के द्वार दिए जाने वाले दहेज़ के बारे में लड़के वालो को अंदाजा नहीं होता था और न ही वह अपनी और से किसी तरह की कोई मांग करते थे.
बदलता समय इस रीतिरिवाज को भी बदलता गया कन्या की शादी में स्वेच्छा से दिया जाने वाला धन धीरे-धीरे लड़के वालो का एक तरह से अधिकार बनने लग गया. आज के समय में तो कई व्यक्ति दहेज़ को अपना जन्मसिद्ध अधिकार ही मानने लग गए हैं.
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