The difference between the place value of two 8's in 85382
(a) 79920 (b) 79980
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==>>> सामंतवाद एक ऐसी मध्ययुगीन प्रशासकीय प्रणाली और सामाजिक व्यवस्था थी, जिसमें स्थानीय शासक उन शक्तियों और अधिकारों का उपयागे करते थे जो सम्राट, राजा अथवा किसी केन्द्रीय शक्ति को प्राप्त होते हैं=। सामाजिक दृष्टि से समाज प्रमुखतया दो वर्गों में विभक्त था- सत्ता ओर अधिकारों से युक्त राजा और उसके सामंत तथा अधिकारों से वंचित कृशक और दास। इस सामंतवाद के तीन प्रमुख तत्व थे - जागीर, सम्प्रभुता और संरक्षण।
==>>> कानूनी रूप से राजा या सम्राट समस्त भूमि का स्वामी होता था। समस्त भूमि विविध श्रेणी के स्वामित्व के सामंतों में और वीर सैनिकों में विभक्त थी। भूमि, धन और सम्पित्त का साधन समझी जाती थी। सामंतों में यह वितरित भूिम उनकी जागीर होती थी। व्यावहारिक रूप में इस वितरित भूमि के भूमिपति अपनी-अपनी भूमि में प्रभुता-सम्पन्न होते थे। इन सामंतों का राजा या सम्राट से यही संबंध था कि आवश्यकता पड़ने पर वे राजा की सैनिक सहायता करते थे और वार्षिक निर्धारित कर देते थे। समय-समय पर वे भंटे या उपहार में धन भी देते थे। ये सामतं अपने क्षत्रे में प्रभुता-सम्पन्न होते थे और वहां शान्ति और सुरक्षा बनाये रखते थे। वे कृषकों से कर वसूल करते थे और उनके मुकदमे सुनकर न्याय भी करते थे।