Urja ke Ger paramparagat stroto Ke kinhi Do Lafzon ka ullekh kijiye
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hey mate
आज भी ऊर्जा के परम्परागत स्रोत महत्वपूर्ण हैं, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता, तथापि ऊर्जा के गैर-परम्परागत स्रोतों अथवा वैकल्पिक स्रोतों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। इससे एक ओर जहां ऊर्जा की मांग एवं आपूर्ति के बीच का अन्तर कम हो जाएगा, वहीं दूसरी ओर पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों का संरक्षण होगा, पर्यावरण पर दबाव कम होगा, प्रदूषण नियंत्रित होगा, ऊर्जा लागत कम होगी और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सामाजिक जीवन स्तर में भी सुधार हो पाएगा।
वर्तमान में भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जिन्होंने 1973 से ही नए तथा पुनरोपयोगी ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने के लिए अनुसंधान और विकास कार्य आरंभ कर दिए थे। परन्तु, एक स्थायी ऊर्जा आधार के निर्माण में पुनरोपयोगी ऊर्जा या गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के उपयोग के उत्तरोत्तर बढ़ते महत्व को तेल संकट के तत्काल बाद 1970 के दशक के आरंभ में पहचाना जा सका।
आज पुनरोपयोगी और गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के दायरे में सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जल विद्युत्, बायो गैस, हाइड्रोजन, इंधन कोशिकाएं, विद्युत् वहां, समुद्री उर्जा, भू-तापीय उर्जा, आदि जैसी नवीन प्रौद्योगिकियां आती हैं।