Uses of coconut stem in Hindi
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बॉलिवुड की फिल्मों में मोहब्बत में गिरफ्तार हीरो-हिरोइन अक्सर सिर भिड़ाकर नारियल पानी पीते नजर आते हैं। जरूरत पड़ने पर यह विलेन का सिर तोड़ने के काम भी आता है। लेकिन नारियल की कहानी महज इतनी नहीं है। लाखों-करोड़ों लोगों की श्रद्धा और रोजी-रोटी इससे जुड़ी है। साउथ इंडिया में तो इसके बिना किसी डिश के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। नारियल के पेड़ का हर हिस्सा किसी-न-किसी इस्तेमाल में जरूर आता है। शायद इसीलिए इसे 'जन्नत का दरख्त' और 'जिंदगी का पेड़' आदि कहते हैं। आज वर्ल्ड कोकोनट डे के मौके पर नारियल कथा बता रहे हैं अभिषेक भट्टाचार्य :
हॉट शॉट
- नारियल का पेड़ 20-30 मीटर ऊंचा होता है।
- एक पेड़ से सालाना 70-100 नारियल मिलते हैं ।
- करीब 1.5 करोड़ नारियल के पेड़ अकेले केरल में हैं। केरल को कोकोनट लैंड भी माना जाता है।
- 13 बिलियन सालाना नारियल उपजा कर भारत दुनिया का सबसे बड़ा नारियल उत्पादक देश है ।
- 2 सितंबर को र्वल्ड कोकोनट डे के तौर पर मनाया जाता है।
हिस्ट्री
- नारियल का जिक्र वेदों में मिलता है, जिनमें इसे कल्प वृक्ष कहा गया है।
- पश्चिमी दुनिया नारियल से 6 वीं शताब्दी तक अंजान थी। यह हिंद महासागर के जरिए भारत से इजिप्ट पहुंचा।
- मार्को पोलो ने अपने भारत यात्रा के दौरान जब इस फल को देखा तो इसे 'फेराओ नट' का नाम दिया।
- अबाउट डॉट कॉम के मुताबिक, coconut (नारियल) शब्द अंग्रेजी अखबारों में पहली बार 1555 में प्रकाशित हुआ।
- 20 वीं शताब्दी तक निकोबार द्वीप पर सामान खरीदने के लिए साबुत नारियल का बतौर करेंसी इस्तेमाल किया जाता था।
हॉट शॉट
- नारियल का पेड़ 20-30 मीटर ऊंचा होता है।
- एक पेड़ से सालाना 70-100 नारियल मिलते हैं ।
- करीब 1.5 करोड़ नारियल के पेड़ अकेले केरल में हैं। केरल को कोकोनट लैंड भी माना जाता है।
- 13 बिलियन सालाना नारियल उपजा कर भारत दुनिया का सबसे बड़ा नारियल उत्पादक देश है ।
- 2 सितंबर को र्वल्ड कोकोनट डे के तौर पर मनाया जाता है।
हिस्ट्री
- नारियल का जिक्र वेदों में मिलता है, जिनमें इसे कल्प वृक्ष कहा गया है।
- पश्चिमी दुनिया नारियल से 6 वीं शताब्दी तक अंजान थी। यह हिंद महासागर के जरिए भारत से इजिप्ट पहुंचा।
- मार्को पोलो ने अपने भारत यात्रा के दौरान जब इस फल को देखा तो इसे 'फेराओ नट' का नाम दिया।
- अबाउट डॉट कॉम के मुताबिक, coconut (नारियल) शब्द अंग्रेजी अखबारों में पहली बार 1555 में प्रकाशित हुआ।
- 20 वीं शताब्दी तक निकोबार द्वीप पर सामान खरीदने के लिए साबुत नारियल का बतौर करेंसी इस्तेमाल किया जाता था।
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