ऊधो मन नाही दस-बीस।
एक हतौ सो गयो स्याम संग, को आराधे ईस?
भई अति सिथिल सबै माधव बिनु, यथा देह बिनु सीस।
स्वासा अटकि रहे आसा लगि, जीवहिं कोटि बरीस।
तुम तो सखा स्याम सुंदर के, सकल जोग के ईस।
'सूरदास' रसिक की बतियाँ पुरखौ मन जगदीसा
क
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nice poem
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happy studying
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