विज्ञापनों का सामाजिक दायित्व
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विज्ञापन की दुनिया काफी मायावी है। बाजारीकरण के मौजूदा दौर में विज्ञापनों का महत्त्व दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है | विज्ञापन का पूरा करोबार ‘जो दिखता है वही बिकता है’ की तर्ज पर चल रहा है। आज तो आलम यह है कि इन विज्ञापनों के माध्यम से मांग को पैदा किया जाता है| आज उत्पादक किसी भी तरह से अपने उत्पाद को बाज़ार में बेचना चाहता है और इसके लिए वह विज्ञापनों का सहारा लेकर अपने उत्पाद के लिए उपभोक्ताओं को पैदा करता है| परन्तु इस व्यावसायिकता की दौड़ में दौड़ते हुए हमें यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि हमारा समाज के प्रति भी कुछ दायित्व बनता है|
यदि विज्ञापन में उत्पाद की सही जानकारी न देकर उपभक्ताओं को मूर्ख बनाने का प्रयत्न किया गया है या फिर झूठे वादे किये गए हैं, तो कहीं न कहीं इन विज्ञापनों के प्रस्तुतकर्ता समाज को धोखा दे रहे हैं और इनके घातक परिणाम हो सकते हैं | विशेष रूप से छोटे बच्चों की मानसिकता के साथ खिलवाड़ कर उन्हें अपने जाल में फंसाना बहुत ही अनैतिक है | अनावश्यक रूप से नारियों का इन विज्ञापनों में प्रयोग भी कहीं न कहीं गलत है | प्रस्तुतकर्ताओं को एक मर्यादा में रह कर ही इन विज्ञापनों का निर्माण करना चाहिए |
अंत में मैं यही कहना चाहूँगी कि चूँकि इन विज्ञापनों का समाज पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है, अत: इनका प्रयोग समाज की भलाई के रूप में किया जाना चाहिए नाकि स्वयं के निजी लाभ के लिए |
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hey
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