विज्ञापनों की वजह से होने वाली समस्याओं पर निबंध .
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महंगाई :- विज्ञापन वस्तुओं के दाम को प्रभावित करती हैं | बढ़िया विज्ञापन के लिए निर्माता काफी पैसा व्यय करता है | जिसकी भरपाई वह वस्तु की कीमत बढ़ा कर करता है | इस कारण चीज़ों के दाम बढ़ बढ़ जाते हैं |
अश्लीलता :- वर्तमान में विज्ञापन के द्वारा अश्लीलता बढ़ी है | एक सीमेंट के प्रचार के लिए अधनंगी युवती को दिखाने का क्या प्रयोजन है ? क्यों विज्ञापन में एक युवक के पीछे कई युवतियों को भागते हुए दीखाया जाता है?
यह सब विज्ञापन अश्लीलता फैलाते हैं |
मिथ्व्ययिता : विज्ञापन देखने के बाद लोगों को लगता है की विज्ञापन में दिखायी गई वस्तु उनके पास भी होनी चाहिए | इस चक्कर में वह अपना धन अनावश्यक वस्तुओं पर व्यय कर देते हैं |
अंधी दौड़ : - निर्माता वर्ग बाज़ार में अपनी पकड़ एक दूसरे से ज्यादा बनाने के लिए अपने विज्ञापनों में अन्य निर्माताओं की बुराई करने लगते है | एक दूसरे के खिलाफ विज्ञापन की रैली बनाने की अंधी दौड़ में उपभोक्ता वर्ग की जेब काटते हैं |
छोटी कंपनियों का पतन :- बढ़िया स्तर पर विज्ञापन न कर पाने के अभाव से छोटे और मझले निर्माता वर्ग का उत्पाद बाज़ार में नहीं बिक पाता है | धीरे-२ एन इकाइयों का या तो पतन हो गया या बड़े निर्माता से काम ले कर अपना धंधा पानी चला रहे हैं | आम तौर पर हमारी स्वदेशी निर्माता धन के अभाव के कारण बड़ी विदेशी कंपनियों को कड़ी टक्कर नहीं दे पा रही हैं |
सामाजिक प्रदुषण :- गलती और भूल के अंतर को मिटाना | कुछ उत्पादों के विज्ञापनों में दर्शकों को बताया जाता है की आप से जो हुआ है वह गलती नहीं है , वह तो भूल है और इस भूल को सुधारने के लिए आप हमारे उत्पाद का इस्तेमाल करें | विज्ञापनों का यह रूप समाज में गलत सन्देश और सामाजिक प्रदुषण फैला रहा है |
मानकों का अभाव :- विज्ञापनों में उत्पादों के मानकों के सम्बन्ध में बहुत कम या ना के बराबर जानकारी दी जाती है |
विज्ञापन का महत्व हमारे जीवन में ठीक उसी तरह है जैसे भोजन में आचार | कम और लाभकारी |
विज्ञापन होने चाहिए, पर एक संशोधित रूप में जो समाज को भ्रमित न करें |
अक्सर घर के सदस्य उसी उत्पाद को खरीदने की जिद करने लगते है जिनका उन्होंने विज्ञापन देखा होता है | जबकि उसी उत्पाद के कई बेहतर विकल्प बाज़ार में मौजूद हैं | इस कारण से हमें अपनी जेब जरुरत से ज्यादा ढीली करनी पड़ती है |
कुछ लोगों ने कहा के आपको अच्छे-बुरे की समझ होनी चाहिए | दोस्तों सिर्फ हम ही विज्ञापन नहीं देखते | हमारे परिवार और समाज का बहुत बड़ा वर्ग जो अभी परिपक्व नहीं हुआ है वो भी इन विज्ञापनों को देखता है |
आज के दौड़-भाग के युग में हमारे पास अपने छोटे भाई-बहनों को अच्छी बातें बताने का समय तो है नहीं, फिर हम उन्हें वर्तमान समय में विज्ञापन से दिए जा रहे गलत संदेशो से कैसे बचाएँ ?
अश्लीलता :- वर्तमान में विज्ञापन के द्वारा अश्लीलता बढ़ी है | एक सीमेंट के प्रचार के लिए अधनंगी युवती को दिखाने का क्या प्रयोजन है ? क्यों विज्ञापन में एक युवक के पीछे कई युवतियों को भागते हुए दीखाया जाता है?
यह सब विज्ञापन अश्लीलता फैलाते हैं |
मिथ्व्ययिता : विज्ञापन देखने के बाद लोगों को लगता है की विज्ञापन में दिखायी गई वस्तु उनके पास भी होनी चाहिए | इस चक्कर में वह अपना धन अनावश्यक वस्तुओं पर व्यय कर देते हैं |
अंधी दौड़ : - निर्माता वर्ग बाज़ार में अपनी पकड़ एक दूसरे से ज्यादा बनाने के लिए अपने विज्ञापनों में अन्य निर्माताओं की बुराई करने लगते है | एक दूसरे के खिलाफ विज्ञापन की रैली बनाने की अंधी दौड़ में उपभोक्ता वर्ग की जेब काटते हैं |
छोटी कंपनियों का पतन :- बढ़िया स्तर पर विज्ञापन न कर पाने के अभाव से छोटे और मझले निर्माता वर्ग का उत्पाद बाज़ार में नहीं बिक पाता है | धीरे-२ एन इकाइयों का या तो पतन हो गया या बड़े निर्माता से काम ले कर अपना धंधा पानी चला रहे हैं | आम तौर पर हमारी स्वदेशी निर्माता धन के अभाव के कारण बड़ी विदेशी कंपनियों को कड़ी टक्कर नहीं दे पा रही हैं |
सामाजिक प्रदुषण :- गलती और भूल के अंतर को मिटाना | कुछ उत्पादों के विज्ञापनों में दर्शकों को बताया जाता है की आप से जो हुआ है वह गलती नहीं है , वह तो भूल है और इस भूल को सुधारने के लिए आप हमारे उत्पाद का इस्तेमाल करें | विज्ञापनों का यह रूप समाज में गलत सन्देश और सामाजिक प्रदुषण फैला रहा है |
मानकों का अभाव :- विज्ञापनों में उत्पादों के मानकों के सम्बन्ध में बहुत कम या ना के बराबर जानकारी दी जाती है |
विज्ञापन का महत्व हमारे जीवन में ठीक उसी तरह है जैसे भोजन में आचार | कम और लाभकारी |
विज्ञापन होने चाहिए, पर एक संशोधित रूप में जो समाज को भ्रमित न करें |
अक्सर घर के सदस्य उसी उत्पाद को खरीदने की जिद करने लगते है जिनका उन्होंने विज्ञापन देखा होता है | जबकि उसी उत्पाद के कई बेहतर विकल्प बाज़ार में मौजूद हैं | इस कारण से हमें अपनी जेब जरुरत से ज्यादा ढीली करनी पड़ती है |
कुछ लोगों ने कहा के आपको अच्छे-बुरे की समझ होनी चाहिए | दोस्तों सिर्फ हम ही विज्ञापन नहीं देखते | हमारे परिवार और समाज का बहुत बड़ा वर्ग जो अभी परिपक्व नहीं हुआ है वो भी इन विज्ञापनों को देखता है |
आज के दौड़-भाग के युग में हमारे पास अपने छोटे भाई-बहनों को अच्छी बातें बताने का समय तो है नहीं, फिर हम उन्हें वर्तमान समय में विज्ञापन से दिए जा रहे गलत संदेशो से कैसे बचाएँ ?
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