विजयदान देथा की कहानी ‘दुविधा’ ( जिस पर ‘पहेली’ फ़िल्म बनी है ) के अंश को पढ़ कर आप देखेंगे/देखेंगी कि भगत जी की संतुष्ट जीवन-दॄष्टि की तरह ही गड़रिए की जीवन-दॄष्टि है, इससे आपके भीतर क्या भाव जगते हैं?
गड़रिया बगैर कहे ही उस के दिल की बात समझ गया,
पर अंगूठी कबूल नहीं की। काली दाढ़ी के बीच पीले दाँतों
की हँसी हँसते हुए बोला- ‘मैं कोई राजा नहीं हूँ जो न्याय
की कीमत वसूल करूँ। मैंने तो अटका काम निकाल
दिया। और यह अँगूठी मेरे किस काम की! न यह
अँगुलियों में आती है, न तड़े में। मेरी भेड़ें भी मेरी तरह
गँवार हैं। घास तो खाती हैं, पर सोना सूँघती तक नहीं।
बेकार की वस्तुएँ तुम अमीरों को ही शोभा देती हैं।’
- विजयदान देथा
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दुविधा
Explanation:
दुविधा की कहानी राजस्थान के एक गांव की कहानी है।इस कहानी में गाडियां एक भूत को पकड़ने में एक परिवार कि मदद करता है।
मगर बदले में कुछ नहीं मांगता।ऐसा प्रतीत होता है कि गाडियां समझ गया था कि वो परिवार बोहोत ब्ब आदि दुविधा में है,वो केवल परिवार कि मदद करता है।
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