विनय के पद के अनुवाद
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एकवचन ,पुल्लिंग .........
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जाके प्रिय न राम बैदेही ।
तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।1।।
तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषण बंधु , भरत महतारी ।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज-बनित्नहिं , भए मुद-मंगलकारी।।2।।
नाते नेह रामके मनियत सुह्र्द सुसेब्य जहां लौं ।
अंजन कहा आंखि जेहि फूटै ,बहुतक कहौं कहाँ लौं ।।3।
तुलसी सो सब भांति परम हित पूज्य प्रानते प्यारे ।
जासों होय सनेह राम –पद , एतो मतो हमारो ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिसे सीता राम प्रिय नहीं हैं वह भले ही अपना कितना ही प्रिय क्यों नहीं हो उसे बड़े दुश्मन के सामान छोड़ देना चाहिए |कवि अनेक उदाहरणों से सिद्ध करते हैं प्रहलाद ने अपने पिता हिरणकश्यप का,विभीषण ने अपने भाई रावण का ,भरत ने अपनी माँ ,राजा बलि ने अपने गुरू और ब्रज की स्त्रियों ने कृष्ण के प्रेम में अपने पतियों का परित्याग किया था | उन सभी ने अपने प्रियजनों को छोड़ा और उनका कल्याण ही हुआ |राम के साथ प्रेम का नाता ही सबसे बड़ा नाता है ,सम्बन्ध है | नाते नेह रामके मनियत सुह्र्द सुसेब्य जहां लौं । मित्र और पूजनीय लोगों के साथ हमारा सम्बन्ध ,उनके राम के साथ सम्बन्ध (प्रेम और स्नेह ) पर आधारित (जहां लौं )होना चाहिए | ऐसे सुरमे को आँख में लगाने से क्या लाभ जिससे आँख ही फूट जाए ? तुलसी दास जी कहते हैं कि वह व्यक्ति सब तरह से परम हित , पूज्य और प्राण से प्यारा है जिसके ह्रदय में राम के पद है |यह उनकी व्यक्तिगत राय है | बैदेही – सीता , तजिये – छोड़ दीजिए, कंत – पति ,बनित्नहिं – स्त्रियों की ,सुह्र्द –संबंधी, सुसेब्य – पूजनीय ,आराधना करने योग्य ,अंजन –
तजिये ताहि कोटि बैरी सम, जदपि प्रेम सनेही ।।1।।
तज्यो पिता प्रहलाद, विभीषण बंधु , भरत महतारी ।
बलि गुरु तज्यो कंत ब्रज-बनित्नहिं , भए मुद-मंगलकारी।।2।।
नाते नेह रामके मनियत सुह्र्द सुसेब्य जहां लौं ।
अंजन कहा आंखि जेहि फूटै ,बहुतक कहौं कहाँ लौं ।।3।
तुलसी सो सब भांति परम हित पूज्य प्रानते प्यारे ।
जासों होय सनेह राम –पद , एतो मतो हमारो ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिसे सीता राम प्रिय नहीं हैं वह भले ही अपना कितना ही प्रिय क्यों नहीं हो उसे बड़े दुश्मन के सामान छोड़ देना चाहिए |कवि अनेक उदाहरणों से सिद्ध करते हैं प्रहलाद ने अपने पिता हिरणकश्यप का,विभीषण ने अपने भाई रावण का ,भरत ने अपनी माँ ,राजा बलि ने अपने गुरू और ब्रज की स्त्रियों ने कृष्ण के प्रेम में अपने पतियों का परित्याग किया था | उन सभी ने अपने प्रियजनों को छोड़ा और उनका कल्याण ही हुआ |राम के साथ प्रेम का नाता ही सबसे बड़ा नाता है ,सम्बन्ध है | नाते नेह रामके मनियत सुह्र्द सुसेब्य जहां लौं । मित्र और पूजनीय लोगों के साथ हमारा सम्बन्ध ,उनके राम के साथ सम्बन्ध (प्रेम और स्नेह ) पर आधारित (जहां लौं )होना चाहिए | ऐसे सुरमे को आँख में लगाने से क्या लाभ जिससे आँख ही फूट जाए ? तुलसी दास जी कहते हैं कि वह व्यक्ति सब तरह से परम हित , पूज्य और प्राण से प्यारा है जिसके ह्रदय में राम के पद है |यह उनकी व्यक्तिगत राय है | बैदेही – सीता , तजिये – छोड़ दीजिए, कंत – पति ,बनित्नहिं – स्त्रियों की ,सुह्र्द –संबंधी, सुसेब्य – पूजनीय ,आराधना करने योग्य ,अंजन –
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