Hindi, asked by NihaalAhir, 1 day ago

विपत्ति में ही सच्चे मित्र की पहचान होती है, स्पष्ट कीजिए कृति के लिए आवश्यक सोपान विद्यार्थियों से उनके मित्रों के नाम पूछे । • विद्यार्थी किसे अपना सच्चा मित्र मानते हैं, बिताने के लिए कहें। किन-किन कार्यों में मित्र ने उनकी सहायता की है, पूछे । • विद्यार्थी अपने-अपने मित्रों के सच्चे मित्र बनने के लिए क्या करेंगे, बताने के लिए प्रेरित करें ।​

Answers

Answered by akshaypavani34
8

Answer:

सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय ही होती है। जो मित्र विपत्ति में आपका साथ दे वही सच्चा मित्र है। जो मित्र आपकी खुशी में शामिल होता है और दुख आने पर आपसे दूर हो जाता है तो वह आपका सच्चा मित्र नहीं है। ऐसा मित्र शत्रु से भी ज्यादा खतरनाक है। यह विचार आचार्य राहुल कृष्ण शास्त्री ने गुरुवार को जीवाजीगंज स्थित रतन कॉलोनी में भागवत कथा सुनाते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि सुखी गृहस्थ परिवार वही है जहां पति - प|ी में आपसी सामंजस्य हो। यह सामंजस्य तभी संभव होता है जब पति- प|ी अपनी मर्यादा का पालन करें। कभी -कभी गृहस्थ जीवन में धर्म संकट उत्पन्न हो जाता है। उस समय पति- प|ी दोनों को आपसी सूझबूझ से काम लेना चाहिए। किसी निर्णय को लेने में जरा सी चूक हुई तो गृहस्थ संसार में पश्चाताप करने के सिवाय कुछ भी नहीं मिलता है। कथा के अंत में अनिल केसवानी, महक केसवानी, मोहन करमचंदानी, सिमरन करमचंदानी, रितिका, सनी, स्नेहा ने भागवत पुराण की आरती उतारी।

Explanation:

Answered by smala8243
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Explanation:

सच्चे मित्र की पहचान विपत्ति के समय ही होती है। जो मित्र विपत्ति में आपका साथ दे वही सच्चा मित्र है। जो मित्र आपकी खुशी में शामिल होता है और दुख आने पर आपसे दूर हो जाता है तो वह आपका सच्चा मित्र नहीं है। ऐसा मित्र शत्रु से भी ज्यादा खतरनाक है। यह विचार आचार्य राहुल कृष्ण शास्त्री ने गुरुवार को जीवाजीगंज स्थित रतन कॉलोनी में भागवत कथा सुनाते हुए व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि सुखी गृहस्थ परिवार वही है जहां पति - प|ी में आपसी सामंजस्य हो। यह सामंजस्य तभी संभव होता है जब पति- प|ी अपनी मर्यादा का पालन करें। कभी -कभी गृहस्थ जीवन में धर्म संकट उत्पन्न हो जाता है। उस समय पति- प|ी दोनों को आपसी सूझबूझ से काम लेना चाहिए। किसी निर्णय को लेने में जरा सी चूक हुई तो गृहस्थ संसार में पश्चाताप करने के सिवाय कुछ भी नहीं मिलता है। कथा के अंत में अनिल केसवानी, महक केसवानी, मोहन करमचंदानी, सिमरन करमचंदानी, रितिका, सनी, स्नेहा ने भागवत पुराण की आरती उतारी।

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