वास्तुकला का 'अनुप्रस्थ टोडा निर्माण' सिद्धांत 'चापाकार' सिद्धांत से किस तरह भिन्न है।
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वास्तुकला का 'अनुप्रस्थ टोडा निर्माण' सिद्धांत 'चापाकार' सिद्धांत से निम्न तरह भिन्न है :
वास्तुकला की 'अनुप्रस्थ रोडा निर्माण’ शैली में छत, दरवाजे और खिड़कियां दो ऊर्ध्वाधर स्तंभों में एक क्षैतिज बीम रखकर बनाए गए थे। आठवीं से 10वीं शताब्दी के बीच मंदिरों , मस्जिदों, मकबरों तथा बावली से जुड़ें भवनों का निर्माण इस शैली में किया गया।
दिल्ली की कुव्वल - अल - इस्लाम मस्जिद इसका एक उदाहरण है । इसके मेहराब के निर्माण में अनुप्रस्थ टोडा शैली का ही प्रयोग किया गया है।
'चापाकार' शैली में दरवाजे और खिड़कियों के ऊपर अधिरचना का भार ले जाने वाले मेहराब हैं। अलाई दरवाज़े के मेहराब के निर्माण में यही शैली अपनाई गई है।
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