Hindi, asked by alokmangla31, 4 months ago

विद्यापति की साहित्यिक विशेषताएं​

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Answered by Rk4558
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Answer:

विद्यापति आदिकाल के मैथिल कवि हैं। कीर्तिलता, पदावली व कीर्तिपताका उनकी तीन प्रमुख रचनाएँ हैं। इन्हीं रचनाओं के आधार पर उनके कला पक्ष का समग्र मूल्यांकन किया जा सकता है।

विद्यापति के काव्य का रूप (काव्यरूप) प्रबंध प्रकार का है। इनकी तीनों महत्त्वपूर्ण रचनाएँ खंडकाव्य प्रकृति की हैं।

भाषा के स्तर पर देखें तो विद्यापति के यहाँ भाषायी विविधता दिखाई देती है। कीर्तिलता की रचना अवहट्ट में हुई है, वहीं पदावली की रचना मैथिली भाषा में की गई है। भाषा की दृष्टि से कीर्तिलता उनकी एक महत्त्वपूर्ण रचना है। कीर्तिलता की अवहट्ट में कुछ विशेषताएंँ साफ दिखती हैं जो उसे परिविष्ठत अपभ्रंश से अलग करती हैं।

इसी प्रकार, पदावली मैथिली भाषा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण रचना है। इसमें लोकप्रचलित मैथिली का प्रयोग किया गया है।

विद्यापति के काव्य की एक प्रमुख विशेषता यह भी है कि कहीं-कहीं उनकी कविताओं के बीच में गद्य के दर्शन भी होते हैं। कीर्तिलता ऐसा ही रचना है।

इसे वर्णन की दृष्टि से देखें तो विद्यापति का काव्य वीर,शृंगार व भक्ति का अद्भुत समन्वय है। कीर्तिलता वीर रस प्रधान रचना है, वहीं पदावलीशृंगार व भक्ति का मिश्रण है। हालाँकि, आचार्य शुक्ल ने पदावली के रस विद्यान पर प्रश्नचिह्न उठाते हुए इसेशृंगार प्रधान रचना माना है न कि भक्ति प्रधान। इस संबंध में उन्होंने लिखा है कि "अध्यात्मक रंग के चश्मे बहुत सस्ते हो गए हैं।"

समग्र रूप में कहें तो कला की दृष्टि से विद्यापति का काव्य लोककाव्य के अधिक नज़दीक है। यही कारण है कि विद्यापति आज भी अत्यंत लोकप्रिय है।

Answered by kaushanimisra97
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Answer: विद्यापति में भाषा के स्तर पर भाषाई विविधता देखी जा सकती है। पदावली जहां मैथिली भाषा में लिखी गई है वहीं कीर्तिलता अहट्ट भाषा में लिखी गई है। भाषाई दृष्टिकोण से, कीर्तिलता उनके सबसे महत्वपूर्ण आविष्कारों में से एक है। कीर्तिलता के आवहत में कुछ विशेषताएं हैं जो इसे सीमित अपभ्रंश से अलग करती हैं। पदावली के समान, पदावली मैथिली के दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण रचना है। यह व्यापक रूप से प्रयुक्त मैथिली में लिखा गया था।

Explanation: अवहट्टा, मैथिली और संस्कृत भाषाओं में ब्लॉक शैली की कविताएँ विद्यापति द्वारा लिखी गई हैं। उनकी नींव बहादुरी, अलंकरण और प्रतिबद्धता है। उनमें कुछ गद्य भी हैं। उनके तीन सबसे प्रसिद्ध टुकड़े कीर्तिलता, पदावली और कीर्ति पताका हैं। वीर-रस कीर्तिलता की नींव है, और गद्य दर्शन भी हैं। पदावली के त्योहार का आविष्कार श्रृंगार और भक्ति-रस ने किया था। यद्यपि विद्यापति की रचनाएँ लोक काव्य से मिलती-जुलती हैं, फिर भी वे आज भी बहुत पसंद की जाती हैं।

वर्णन की दृष्टि से देखा जाए तो विद्यापति के काव्य में वीरता, वैभव और भक्ति का अद्भुत संगम है। मूल रचना कीर्तिलता वीर रस है, जबकि पदावली अलंकार को भक्ति से जोड़ती है। पदावली के विज्ञान की वैधता पर सवाल उठाने वाले आचार्य शुक्ल ने इसे भक्ति प्रधान के बजाय श्रृंगार प्रधान आविष्कार माना। उन्होंने कहा कि इस संबंध में "आध्यात्मिक रूप से रंगीन चश्मे अपेक्षाकृत सस्ते हो गए हैं"।

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