विद्यार्थी जीवन पर 10 lines in sanskrit
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Hi Friends
विद्यार्थी जीवन साधना और तपस्या का जीवन है । यह काल एकाग्रचित्त होकर अध्ययन और ज्ञान-चिंतन का है । यह काल सांसारिक भटकाव से स्वयं को दूर रखने का काल है । विद्यार्थियों के लिए यह जीवन अपने भावी जीवन को ठोस नींव प्रदान करने का सुनहरा अवसर है । यह चरित्र-निर्माण का समय है । यह अपने ज्ञान को सुदृढ़ करने का एक महत्त्वपूर्ण समय है ।
विद्यार्थी जीवन पाँच वष की आयु से आरंभ हो जाता है । इस समय जिज्ञासाएँ पनपने लगती हैं । ज्ञान-पिपासा तीव्र हो उठती है । बच्चा विद्यालय में प्रवेश लेकर ज्ञानार्जन के लिए उद्यत हो जाता है । उसे घर की दुनिया से बड़ा आकाश दिखाई देने
लगता है । नए शिक्षक नए सहपाठी और नया वातावरण मिलता है । वह समझने लगता है कि समाज क्या है और उसे समाज में किस तरह रहना चाहिए । उसके ज्ञान का फलक विस्तृत होता है । पाठ्य-पुस्तकों से उसे लगाव हो जाता है । वह ज्ञान रस का स्वाद लेने लगता है जो आजीवन उसका पोषण करता रहता है ।
Thank You
विद्यार्थी जीवन साधना और तपस्या का जीवन है । यह काल एकाग्रचित्त होकर अध्ययन और ज्ञान-चिंतन का है । यह काल सांसारिक भटकाव से स्वयं को दूर रखने का काल है । विद्यार्थियों के लिए यह जीवन अपने भावी जीवन को ठोस नींव प्रदान करने का सुनहरा अवसर है । यह चरित्र-निर्माण का समय है । यह अपने ज्ञान को सुदृढ़ करने का एक महत्त्वपूर्ण समय है ।
विद्यार्थी जीवन पाँच वष की आयु से आरंभ हो जाता है । इस समय जिज्ञासाएँ पनपने लगती हैं । ज्ञान-पिपासा तीव्र हो उठती है । बच्चा विद्यालय में प्रवेश लेकर ज्ञानार्जन के लिए उद्यत हो जाता है । उसे घर की दुनिया से बड़ा आकाश दिखाई देने
लगता है । नए शिक्षक नए सहपाठी और नया वातावरण मिलता है । वह समझने लगता है कि समाज क्या है और उसे समाज में किस तरह रहना चाहिए । उसके ज्ञान का फलक विस्तृत होता है । पाठ्य-पुस्तकों से उसे लगाव हो जाता है । वह ज्ञान रस का स्वाद लेने लगता है जो आजीवन उसका पोषण करता रहता है ।
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विद्यार्थी जीवनम् Essay in sanskrit .
विद्यार्थी जीवनम्
मनुष्यजीवने छात्रजीवनं सर्वाधिक: महत्वपूर्णम् भवति | यदि छात्रजीवनं आदर्शजीवनं भवति, तर्हि सम्पूर्ण जीवने आदर्शस्य आचरणस्य सम्भावना भवति |
आदर्श छात्रा: सदैव समयस्य सदुपयोगं कुर्वन्ति | ते समयेन स्नात्वा दैनिक चर्यां कृत्वा अध्ययने संलग्ना भवन्ति | सद्विचारा: तेषां सम्पत्तय: भवन्ति |
स्वावलम्बनेतेषां गहननिष्ठा भवति | स: निज गुरोः आदरं करोति | निज पितरौ सम्मानं करोति | निज कार्यं स्वयं करोति | अत: शास्त्रे अपि कथितं यत् य: एतादृश: भवति तस्य चत्वारि आयु:, विद्या, यश: बलं च वर्धन्ते |
More Information :
How to write essay in sanskrit:-
1) Follow the rules of 'लकार'.
2) Use 'उपपद विभक्ति' .
3) Use correct form of 'लिंग', 'वचन' , 'पुरूष'.
Thank you.
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