Sociology, asked by SHAHIDA5236, 10 months ago

व्यापार की सफलता में जाति एवं नातेदारी संपर्क कैसे योगदान कर सकते हैं?

Answers

Answered by mksmamta1407
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Explanation:

उत्तर- एडम स्मिथ के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति अपने लाभ को बढ़ाने की सोचता है और ऐसा करते हुए वह जो भी करता है, स्वतः ही समाज के या सभी के हित में होता है। इस प्रकार, ऐसा प्रतीत होता है कि कोई एक अदृश्य बल यहाँ काम करता है, जो इन व्यक्तियों के लाभ की प्रवृत्ति को समाज के लाभ में बदल देता है।” इस अदृश्य शक्ति को एडम स्मिथ ने ‘अदृश्य हाथ’ का नाम दिया।

Answered by deepaliguptab1
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भारतीय अर्थव्यवस्था के अनेक सामजशास्त्रीय पारम्परिक व्यापारिक समुदायों में केंद्रित है|  

  • भारत में पारंपरिक व्यापारिक समुदायों में वैश्य ही नहीं बल्कि और समूह भी अपनी  भिन्न धार्मिक पहचान  है , जैसे पारसी ,सिंधी ,बोहरा, जैन |  
  • उपनिवेश के पहले   में उन्नत  उत्पादन केन्द्रो के साथ-साथ देशज व्यापरियों का संगठित समाज, बैंकिंग व्यवस्था भी शामिल थी , जिससे भारत आंतरिक स्टार पर और बाकि दुनिया से भी व्यापर करने में सक्षम था | इसमें कर्ज और बैंकिंग  व्यवस्था थी जैसे कि विनिमय और क़र्ज़ का एक महत्वपूर्ण साधन विनिमय बिल , इससे यात्री लम्बी  व्यापार में  इस्तेमाल करते थे | चूँकि व्यापार  प्राथमिकता में इन समुदायों की जाती और नातेदारी क्षेत्रो में होता था  
  • उपनिवेश काल में नमक का दूर दराज़ तक व्यापार तक उपेक्षित जनजाति समूह , बंजारों द्वारा होता था |

हर स्थिति में सामुदायिक संस्थाओं का विशेष स्वरुप और उनका आचरण  विभिन्न संस्थाओ और व्यापारिक प्रथाओ को जन्म  देता है | एक और विशेषता देखने को मिलती है कि व्यापार और खरीदलोग अपनी ही जाति  या समुदाय में होता है क्यूंकि व्यापारी अपने स्वयं के समुदाय जाति में ज्यादा विश्वास करते है औरो की अपेक्षा | इससे व्यापार के कुछ क्षेत्र पर एक ही जाति का एकाधिकार हो जाता है |

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Q.1.- परिश्रम ही सफलता की कुंजी है|

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