Political Science, asked by gkarora50, 3 months ago

वह देश जो दुसरे देशों के विद्वानों को नागरिकता प्रदान
करता है country that grants citizenship to
scholars from other countries
1. अमेरिका America
2. जापान Japan
3. फ्रांस France
4. इटली Italy​

Answers

Answered by Bashshsar
1

Answer:

Statutory Resolution Regarding Disapproval Of The Citizenship ... on 16 August, 2005

> Title : Statutory resolution regarding disapproval of the Citizenship (Amendment) Ordinance, 2005 and Citizenship (Amendment ) Bill, 2005.

MR. DEPUTY-SPEAKER: The House shall now take up Item Nos.16 and 17 together.

श्री संतोष गंगवार (बरेली) महोदय, मैं निम्नलखित संकल्प पेश करता हूं -

ÞÉÊBÉE ªÉc ºÉ£ÉÉ ®É­]Å{ÉÉÊiÉ uÉ®É 28 VÉÚxÉ, 2005 BÉEÉä |ÉJªÉÉÉÊ{ÉiÉ xÉÉMÉÉÊ®BÉEiÉÉ (ºÉƶÉÉävÉxÉ) +ÉvªÉÉnä¶É, 2005 (2005 BÉEÉ ºÉÆJªÉÉÆBÉE 2) BÉEÉ ÉÊxÉ®xÉÖàÉÉänxÉ BÉE®iÉÉÒ cè* Þ THE MINISTER OF STATE IN THE MINISTRY OF HOME AFFAIRS (SHRI SHRIPRAKASH JAISWAL): On behalf of Shri Shivraj Patil, I beg to move:

"That a Bill further to amend the Citizenship Act, 1955, as passed by Rajya Sabha, be taken into consideration."

श्री संतोष गंगवार : माननीय उपाध्यक्ष जी, वैसे तो इस बिल का विरोध करने का कोई कारण नहीं है, पर जिस ढंग से यह बिल आर्डिनेंस के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है, यह सरकार का रवैया गलत है और इसलिए इसकी आवश्यकता नहीं थी और सरकार को लगा कि आर्डिनेंस के माध्यम से जब चाहे बिल पेश कर दे। मेरा मानना है कि सरकार को इस दिशा में ध्यान देना चाहिए और अनावश्यक आर्डिनेंस के माध्यम से सरकार को चलाने का कार्य नहीं करना चाहिए। यह कोई बहुत बड़ा बिल नहीं है। मैं बताना चाहूंगा कि आजादी के बाद लगातार जो देश से बाहर हमारे लोग रहते हैं, वे हमारे संसदीय दल या शिष्ट मंडल के जो भी सदस्य विदेश जाते थे, उनसे निरंतर मांग करते थे[i37] ।

वहां जो हिन्दुस्तान के लोग रहते थे, वे इस बात की मांग करते थे कि हमें दोहरी नागरिकता दी जाए और निरन्तर, वर्षों तक यह बात चलती रही। जब एन.डी.ए. की सरकार आई, तब एन.डी.ए. की सरकार ने इस बात को समझा। मैं आपके संज्ञान में लाना चाहूंगा कि तब ९ जनवरी, २००३ को माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेजी, प्रथम प्रवासी दिवस में विदेशी हिन्दुस्तानी नागरिकों को संबोधित करने के लिए गए। वहां उन्होंने इस मांग को स्वीकार किया और यह कहा था कि हम इस ओर ध्यान दे रहे हैं और इसमें जो भी कदम उठाया जा सकता है, वह उठाया जाएगा।

माननीय उपाध्यक्ष जी, श्री अटल बिहारी जी की सरकार ने इस बारे में फैसला लिया और तत्काल अपनी इस घोषणा को मूर्तरूप देने का फैसला करते हुए मई, २००३ में आवश्यक कानून पेश किया। उसके बाद अगले वर्ष फिर माननीय अटल बिहारी वाजपेयी जी ने प्रवासी भारतीयों के बीच में जाकर उनकी समस्याओं को समझा। तब पहली बार मई २००३ में जो बिल पेश हुआ, उसमें दुनिया के सभी देश शामिल नहीं थे, केवल १६ देश शामिल किए गए थे। उसके बाद यह सोचा गया था कि सरकार इसके बारे में सही ढंग से, एक-एक कदम उठाकर, इस दिशा में विचार कर के, फैसला ले, क्योंकि कुछ देशों में समस्याएं सामने आ रही थीं। वहां यह लगने लगा था कि दोहरी नागरिकता देने पर देश के अंदर समस्याएं पैदा हो रही हैं, लेकिन मुझे लगता है कि जब तीसरी बार, सरकार बदलने के बाद प्रवासी भारतीयों के कार्यक्रम में वर्तमान प्रधान मंत्री जी गए, तो लगता है कि उन्होंने तत्काल एक राजनीति घोषणा कर दी और उसी घोषणा के तहत यह बिल यहां प्रस्तुत हुआ है।

उपाध्यक्ष महोदय, यह बिल राज्य सभा में पारित हो चुका है और हम लोगों ने वहां इसका समर्थन किया था। इसमें बहुत सी बातों की ओर ध्यान दिया गया है और सारे देश इसमें खोल दिए गए हैं। इसमें कहा गया है कि -

“ केंद्रीय सरकार, ऐसी शर्तों और निबंधनों के अधीन रहते हुए, जो वहित किए जाएं, इस नमित्त किए गए किसी आवेदन पर--

Answered by jasvindarsinghkuttan
2

Explanation:

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