What is रस ? Write an easy example for each part .
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kavya padhne sunne ya dekhne me jo anand ki prapti hoti h use ras kahte h.ye 4 prakar ke hote h
1.bhav
2.vibhav
3.anubhav
4.sanchari bhav
1.bhav
2.vibhav
3.anubhav
4.sanchari bhav
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♠ रस
❇ साहित्यिक आनंद को रस कहते हैं। साहित्य अथवा काव्य की आत्मा रस है।
❇ रस के 11 भेद होते हैं।
1 श्रृंगार रस
संयोग श्रृंगार -
औरों को हँसते देखो मनु
हँसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तृत कर लो
सबको सुखी बनाओ।
वियोग श्रृंगार-
निसी दिन बरसत नैन हमारे
सदा रहति पावस ऋतु हमपे, जबसे स्याम सिधारे।
2 वीर रस
तनकर भाला यूँ बोल उठा
राणा! मुझको विश्राम न दे
मुझको वैरी से हृदय क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे।
3 करुण रस
अपनी तुतली भाषा में वह सिसक सिसक कर बोली
जलती थी भूख तर्षा की उसके अंतर में होली
हा! सही न जाती मुझसे अब आज भूख की ज्वाला
कल से ही प्यास लगी है, हो रहा हृदय मतवाला।
4 हास्य रस
हाथी जैसी देह है, गैंडे जैसी खाल
तरबूजे सी खोपड़ी खरबूजे से गाल।
5 रौद्र रस
हय–रूण्ड गिरे¸गज–मुण्ड गिरे¸
कट–कट अवनी पर शुण्ड गिरे।
लड़ते – लड़ते अरि झुण्ड गिरे¸
भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे।।
6 भयानक रस
एक और अजगरहि लखी एक और मृगराय।
बिकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाय।
7 वीभत्स रस
आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते।
8 अद्भुत रस
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया।
9 शांत रस
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।
10 वात्सल्य रस
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति।
11 भक्ति रस
एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।
❇ साहित्यिक आनंद को रस कहते हैं। साहित्य अथवा काव्य की आत्मा रस है।
❇ रस के 11 भेद होते हैं।
1 श्रृंगार रस
संयोग श्रृंगार -
औरों को हँसते देखो मनु
हँसो और सुख पाओ
अपने सुख को विस्तृत कर लो
सबको सुखी बनाओ।
वियोग श्रृंगार-
निसी दिन बरसत नैन हमारे
सदा रहति पावस ऋतु हमपे, जबसे स्याम सिधारे।
2 वीर रस
तनकर भाला यूँ बोल उठा
राणा! मुझको विश्राम न दे
मुझको वैरी से हृदय क्षोभ
तू तनिक मुझे आराम न दे।
3 करुण रस
अपनी तुतली भाषा में वह सिसक सिसक कर बोली
जलती थी भूख तर्षा की उसके अंतर में होली
हा! सही न जाती मुझसे अब आज भूख की ज्वाला
कल से ही प्यास लगी है, हो रहा हृदय मतवाला।
4 हास्य रस
हाथी जैसी देह है, गैंडे जैसी खाल
तरबूजे सी खोपड़ी खरबूजे से गाल।
5 रौद्र रस
हय–रूण्ड गिरे¸गज–मुण्ड गिरे¸
कट–कट अवनी पर शुण्ड गिरे।
लड़ते – लड़ते अरि झुण्ड गिरे¸
भू पर हय विकल बितुण्ड गिरे।।
6 भयानक रस
एक और अजगरहि लखी एक और मृगराय।
बिकल बटोही बीच ही पर्यो मूरछा खाय।
7 वीभत्स रस
आँखे निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़ कर आ जाते शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते।
8 अद्भुत रस
देख यशोदा शिशु के मुख में, सकल विश्व की माया
क्षणभर को वह बनी अचेतन, हिल न सकी कोमल काया।
9 शांत रस
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।
10 वात्सल्य रस
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति।
11 भक्ति रस
एक भरोसो एक बल, एक आस विश्वास
एक राम घनश्याम हित, चातक तुलसीदास।
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