आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं'
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
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Answer:
(क) कवि ऋतुराज जी इन पंक्तियों के माध्यम से समाज के उस चित्र का वर्णन करना चाह रहे है जिसमें बेटियों पर दहेज प्रथा जैसी कई कुप्रथाओं के कारण शारीरिक एवं मानसिक अत्याचार किया जाता रहा है इससे उनके वैवाहिक, सामाजिक, निजी, मानसिक एवं शारीरिक क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है | दहेज प्रथा लालच का नया उग्र रूप है| यह हमारे समाज का बेहद ही भयानक चेहरा है जहां एक तरफ स्त्री को भगवान माना जाता है तो दूसरी ही तरफ चंद पैसों के लिए बेटियों को आग के हवाले कर दिया जाता है| हमें इसके खिलाफ आवाज़ उठाने एवं स्त्रियों को समाज में समान अधिकार एवं इज्जत देने कि आवश्यकता है|
(ख) माँ समाज की अच्छाइयों एवं बुराइयों दोनों से भली भांति परिचित थी| माँ ने आपने जीवन में समाज के हर पहलू को देखा था और स्त्री होने के नाते वह समाज के इन सभी अत्याचारों को झेल चुकी थी| माँ जानती थी कि उनकी बेटी अभी नादान थी और समाज के इस रूप से अनजान थी| माँ चाहती थी कि उनकी बेटी जीवन की हर मुश्किल का सामना बहादुरी से करें एवं किसी भी मोड़ पर खुद को कमजोर न समझे इसलिए माँ ने बेटी को सचेत करना जरूरी समझा|
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आग रोटी सेकने के लिए होती है जलने के लिए नहीं ,,,,,
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इस सबसे मां का यह आशय की कुछ बेटियां अपने परिस्थितियों से परेशान होकर आत्महत्या जैसी कदम उठाती हैं जिसमें वे हालातों से लड़ना नहीं बल्कि हालातों से हार मानना जानती हैं जिससे वह जहर खाना, फांसी लगाना आग लगाने जैसी हरकतें करती हैं जिससे उनके परिवार ससुराल तथा मायके का अपमान होता है समाज में लोग तरह तरह की बातें सोचते हैं। और गंदा मतलब निकालते हैं जिसे परिवार को शर्मिंदगी का बोझ जीवन भर सर पर रहता है। इसलिए मां का यह कहना है कि बेटी यह आग रोटी सेकने के लिए है जलने के लिए नहीं ।
MARK BRAINLIEST
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