Hindi, asked by sitaram67mourya, 1 year ago

आप किस प्रकार महसूस करते हैं कि प्राचीन गुरु की भूमिकाएं बदल गई है आप एक शिक्षक होने के नाते आप प्राचीन गुरु की कौन-कौन सी विशेषताओं को अपनाना चाहेंगे और क्यों

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Answered by Anonymous
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Purane zamane main Guru ke sthaan mata pita se bhi uper hota the.Us samay shikshak bhi bohot lagan aur mehnat se bacchon ko padhaya karte
the taaki unka jeevan sanver sake.Aaj shikshak mehnat to karte hain magar usmein wo lagan nhi hai.Aajkal shikshak kewal apna kaam karna
chahte hain per shishyon ko kitna samajh aaya ya kisi vishya main shishya aggar kamzor hai to jabtak shishyaa ya uske mata pita nhi kahein
shikshak bacchon per itni mehnat nhi
karte.Aajkal shiksha ko bhi vyapar bnaya ja raha hai.Shikshak tution main zyada paise bnana chahte hain.
Yahi mansikta humein hatani hogi
aur shudh hridaya aur lagan jaisi achi
baatein apne jeevan main aur karamshretra main apnana chhahiye.
Answered by MavisRee
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प्राचीन गुरु जिस आदर और श्रद्धा के साथ पूजे जाते थे उसका मुख्य कारण  है गुरु का ज्ञान और शिष्य की शालीनता Iआज के समय में गुरु का ज्ञान भी राजनीति की ओर चला जा रहा है I जगह जगह कोचिंग ट्यूशन इत्यादि में वो अधिक समय और परिश्रम  लगाते हैं और वे लोग जब अपने कार्य स्थल अर्थात विद्यालय पहुँचते हैं तो वहां  विलम्ब से  अपनी कक्षा पहुँचते हैं और पाठ बिना पूरा किये निकल आते हैं I और उन बच्चों पर अधिक ध्यान देते हैं जो बच्चे उनसे ट्यूशन लेते हैं I बाकि बच्चों का क्या होगा एक आक्रोश आएगा निश्चित रूप से और गलत नागरिक तैयार होंगे I परिणाम आज सब देख रहे है गुरु की गरिमा गुरु ही बचा सकते हैं I क्यूंकि पढना और  पढाना सभी युगों में रहेगा I

प्राचीन गुरु की विशेषता सर्वप्रथम उनका विशिष्ट ज्ञान है बच्चे एक प्रश्न करें और हम एक शिक्षक के नाते एक क्षण में दस तरह के उत्तर उन्हें दें I उनकी ज्ञान की प्यास को बुझायें छत्रों के सामने अपनी किसी भी कमजोरी को उजागर न होने दें Iशिक्षा के असली अर्थ से उन्हें अवगत कराएँ ताकि उनके स्वभाव में  

एक संस्कार का निखार हो I


"अज्ञानतिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकया  

चक्छुरुन्मिलितम येन तस्मै श्री गुरुवे नमः  

अर्थात :एक शिक्षक होने के नाते छात्रों के अज्ञान रोपी अंधकार को मिटा सकूँ और ज्ञान रुपी अंजन कि शलाका से उनके बंद आँखों को खोल सकूँ यही मेरी भी इच्छा है I

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