‘अस्पताल के बरामदे में एक मरीज दहन फाड़कर चिल्ला उठा- मुझे क्यों मारा? मुझे क्यों मारा?""यह दृश्य देखकर डॉक्टर सुजुकी ने क्या प्रतिक्रिया की?
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दो दिन से थके हारे डॉक्टर सुजुकी पागलों का शोर, दर्द, चीख, कराह, इन तमाम आवाजों के बीच खोये हुए खड़े थे। तभी नागासाकी पर भी एटम बम गिराये जाने की खबर सुनकर वे चिढ़ उठे थे। वे अपने हृदय का आक्रोश व्यक्त करते हुए बोले कि ये बादशाह और वजीर लोग हार क्यों नहीं मान लेते? क्या अपनी झूठी शान के लिए पूरे जापान को बर्बाद कर देंगे। वे दुश्मनों पर भी बरसते हुए बोले कि इन निर्दोष नागरिकों को क्यों मारा? इनका कोई अपराध नहीं था। इन्हें साम्राज्य नहीं चाहिए था। वे आगे कहते हैं कि ये आम जनता तो बादशाह के बनाये हुए गुलाम हैं, व्यक्ति की सत्ता के शिकार हैं और संस्कारों के गुलाम हैं ।
दुश्मन देश भी जापान की निर्दोष और मूक जनता को मारकर खुश हैं। विज्ञान की शक्ति को परखने के लिए लाखों बेगुनाहों की जान लेना क्या धर्म युद्ध होता है। थक-हारकर डॉक्टर सुजुकी कहते हैं कि ‘इन नये मरीजों के लिए नयी जिन्दगी कहाँ से लाऊँगा, नर्स।’ इस प्रकार वे अपने को विवश और असहाय भी महसूस कर रहे थे।