World Languages, asked by muskan5028, 1 year ago

Aswachh vatavaran ka Hamare Swasthya par kya Prabhav padta hai​

Answers

Answered by love4696
25

Explanation:

अब ऐसे हालातों में प्रश्न ये उठता है, कि इन पदार्थों के दुष्प्रभावों से कैसे बचा जाए। क्या यह संभव है कि इन पदार्थों का प्रयोग ही पूरी तरह से बंद कर दिया जाए? सैद्धांतिक रूप से तो ऐसा किया जा सकता है लेकिन व्यवहार में संभवतः यह बुद्धिमत्तापूर्ण प्रतीत नहीं होता। इसलिए बेहतर तो यह होगा कि इस समस्या के ऐसे समाधान खोजे जाएं जो न केवल व्यावहारिक हों, बल्कि प्रकृति के नजदीक भी हों। जैसे 

1. इन पदार्थों को बनाने में कम से कम रसायनों, और अधिक से अधिक प्राकृतिक घटकों का प्रयोग किया जाए

2. चूँकि एक जैसे अवयवों से बने हुए अनेक पदार्थों का एक साथ प्रयोग करने से उन अवयवों से होने वाले दुष्प्रभावों की संभावना कई गुना बढ़ जाती है, इसलिए कोशिश यह करनी चाहिए कि ऐसे नुकसानदेह पदार्थों का एक साथ प्रयोग कम से कम किया जाए।

3. घरों और भवनों का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए कि उनमें बाहरी हवा का आवागमन भी अधिक से अधिक हो।

4. पेड़-पौधे पर्यावरण को स्वच्छ रखने के अचूक उपाय हैं। इसलिए घरों के भीतर और बाहर वृक्षारोपण को अधिकाधिक प्रोत्साहित करना चाहिए।

हालांकि यह जरूरी नहीं कि पर्यावरण को प्रभावित करने वाले उपर्युक्त कारकों का प्रभाव प्रत्येक मनुष्य पर समान रूप से हो, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य की रोग-प्रतिरोधक क्षमता अलग-अलग होती है, लेकिन फिर भी लगातार संपर्क में आते रहने से ये हानिकाकरक पदार्थ हर किसी पर अपना कुछ न कुछ प्रभाव तो छोड़ ही जाते हैं। और परिणा सदैव एक ही होता है—रुग्ण मन और रूग्ण शरीर। हम जानते हैं कि स्वस्थ और सशक्त समाज के निर्माण के लिए स्वस्थ शरीर और संतुष्ट मन अनिवार्य है इसलिए मन और शरीर को रोगग्रस्त करने वाले इन हानिकारक पदार्थों को दूर करना ही हमारा प्रथम कर्तव्य होना चाहिए। केवल तभी हम एक शक्तिशाली और खुशहाल समाज की स्थापना कर सकेंगे।

Answered by preet123456789
4

Explanation:

अब ऐसे हालातों में प्रश्न ये उठता है, कि इन पदार्थों के दुष्प्रभावों से कैसे बचा जाए। क्या यह संभव है कि इन पदार्थों का प्रयोग ही पूरी तरह से बंद कर दिया जाए? सैद्धांतिक रूप से तो ऐसा किया जा सकता है लेकिन व्यवहार में संभवतः यह बुद्धिमत्तापूर्ण प्रतीत नहीं होता। इसलिए बेहतर तो यह होगा कि इस समस्या के ऐसे समाधान खोजे जाएं जो न केवल व्यावहारिक हों, बल्कि प्रकृति के नजदीक भी हों। जैसे 

1. इन पदार्थों को बनाने में कम से कम रसायनों, और अधिक से अधिक प्राकृतिक घटकों का प्रयोग किया जाए

2. चूँकि एक जैसे अवयवों से बने हुए अनेक पदार्थों का एक साथ प्रयोग करने से उन अवयवों से होने वाले दुष्प्रभावों की संभावना कई गुना बढ़ जाती है, इसलिए कोशिश यह करनी चाहिए कि ऐसे नुकसानदेह पदार्थों का एक साथ प्रयोग कम से कम किया जाए।

3. घरों और भवनों का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए कि उनमें बाहरी हवा का आवागमन भी अधिक से अधिक हो।

4. पेड़-पौधे पर्यावरण को स्वच्छ रखने के अचूक उपाय हैं। इसलिए घरों के भीतर और बाहर वृक्षारोपण को अधिकाधिक प्रोत्साहित करना चाहिए।

हालांकि यह जरूरी नहीं कि पर्यावरण को प्रभावित करने वाले उपर्युक्त कारकों का प्रभाव प्रत्येक मनुष्य पर समान रूप से हो, क्योंकि प्रत्येक मनुष्य की रोग-प्रतिरोधक क्षमता अलग-अलग होती है, लेकिन फिर भी लगातार संपर्क में आते रहने से ये हानिकाकरक पदार्थ हर किसी पर अपना कुछ न कुछ प्रभाव तो छोड़ ही जाते हैं। और परिणा सदैव एक ही होता है—रुग्ण मन और रूग्ण शरीर। हम जानते हैं कि स्वस्थ और सशक्त समाज के निर्माण के लिए स्वस्थ शरीर और संतुष्ट मन अनिवार्य है इसलिए मन और शरीर को रोगग्रस्त करने वाले इन हानिकारक पदार्थों को दूर करना ही हमारा प्रथम कर्तव्य होना चाहिए। केवल तभी हम एक शक्तिशाली और खुशहाल समाज की स्थापना कर सकेंगे।

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