History, asked by akshadajagtap31031, 8 months ago

अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ?

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Answered by kamalraja8786
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Answer:

अठारहवीं शताब्दी में नगरों का स्वरूप बदलने लगा। राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगर पतनोन्मुख हुए और नए नगरों का विकास होने लगा। मुग़ल सत्ता के पतन के साथ ही उसके शासन से जुड़ें नगरों का भी पतन हो गया। मुग़ल राजधानी नगर दिल्ली और आगरा अपने राजनैतिक प्रभुत्व से वंचित होने लगे।

नई क्षेत्रीय ताकतों का विकास क्षेत्रीय राजधानियों: लखनऊ, हैदराबाद, सेरिंगपटनम, पूना (आज का पुणे), नागपुर, बड़ौदा तथा तंजौर (आज का तंजावुर) का महत्व बढ़ गया।

व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य लोग पुराने मुगल केन्द्रों से इन नयी राजधानियों की ओर काम तथा संरक्षण की तलाश में आने लगे।

नए राज्यों के बीच निरंतर लड़ाइयों का परिणाम यह हुआ कि भाड़े के सैनिकों को भी यहाँ तैयार रोज़गार मिलने लगा।

इस काल में कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों एवं मुगलसत्ता से सम्बद्ध अधिकारियों द्वारा भी 'कस्बे' एवं 'गंज़' जैसी नवीन शहरी बस्तियों को बसाया गया। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण अंचल में एक छोटे नगर को कस्बा कहा जाता था। यह सामान्य रूप से स्थानीय विशिष्ट व्यक्ति का केंद्र होता था। एक छोटे स्थायी बाज़ार को गंज के नाम से जाना जाता था। कस्बा एवं गंज दोनों कपड़ा, फल, सब्जी एवं दूध-उत्पादों से सम्बन्ध होते थे। वे विशिष्ट परिवारों एवं सेना के लिए सामग्री उपलब्ध करवाते थे।

व्यापार-तंत्रों में होने वाले परिवर्तनों ने भी शहरी केन्द्रों के इतिहास को प्रभावित किया। यूरोपीय व्यापारिक कम्पनियों ने पहले, मुराल काल में ही विभिन्न स्थानों पर आधार स्थापित कर लिए थे : पुर्तगालियों ने 1510 मेंपणजी में, डचों ने 16०5 में मछलीपट्नम में, अंग्रेजों ने मद्रास में 1639 में तथा फ्रांसीसियों ने 1673 में पांडिचेरी (आज का पुडुचेरी) में व्यापारिक गतिविधियों में विस्तार के साथ ही इन व्यापारिक केंद्रों के आस-पास नगरों का विकास होने लगा।

अठारहवीं शताब्दी के अंत तक स्थल-आधारित साम्राज्यों का स्थान शक्तिशाली जल-आधारित यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, वाणिज्यवाद तथा पूँजीवाद जैसी शक्तियाँ अब समाज के स्वरूप को परिभाषित करने लगी थीं।

Answered by shishir303
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अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों के रूपांतरण के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे...

  • औपनिवेशिक काल में शहरी केंद्रों का रूपांतरण बड़ी तीव्र गति से हुआ था। भारत में जो भी यूरोपीय आए थे वह मूल्यतः शहरी ही होते थे, इस कारण उन्होंने औपनिवेशिक काल में शहरों का ही विकास किया। इनमें पुर्तगाली, डच, ब्रिटिश, फ्रांसीसी आदि थे। पुर्तगालियों ने पणजी, डचों ने मछलीपट्टनम, फ्रांसीसियों ने पांडिचेरी तथा अंग्रेजों ने मद्रास, मुंबई, कोलकाता जैसे बड़े-बड़े नगर बसाये। इनमें ज्यादातर शहर समुद्र के किनारे होते थे।  
  • औपनिवेशिक काल में जहां पुराने नगर जैसे आगरा, लाहौर, दिल्ली पतन की ओर अग्रसर होते गए तो नए शहर जैसे मद्रास, बाम्बे, कलकत्ता आदि बसने लगे और यह शहर शिक्षा, व्यापार, वाणिज्य, प्रशासन आदि की दृष्टि से महत्वपूर्ण केंद्र बन गए। इन शहरों में विभिन्न समुदायों, जातियों, वर्गों, व्यवसायों के लोग रहते थे।  
  • नई क्षेत्रीय ताकतों के विकास के कारण क्षेत्रीय राजधानियों का महत्व बढ़ने लगा। जैसे अवध की राजधानी लखनऊ का महत्व बढ़ा तो दक्षिण के अनेक राज्यों की राजधानियों जैसे तंजौर, पूना, श्रीरंगपट्टनम, नागपुर, बड़ौदा आदि का भी महत्व बढ़ने लगा।  
  • अनेक वर्गों के लोग जैसे व्यापारी, प्रशासक, शिल्पकार तथा अन्य व्यवसायों से संबंध रखने वाले लोग पुराने मुगल केंद्रों जैसे कि दिल्ली, आगरा आदि से नई बसाये शहरों की ओर काम और रोजगार की तलाश में आने लगे।  
  • उस समय नए-नए राज्य बन रहे थे और नई-नई राजनीतिक शक्तियों का उदय हो रहा था, जिस कारण उनमें आपस में संघर्ष भी होता रहता था, लड़ाइयां भी होती रहती थीं। इस कारण सिपाहियों के लिए रोजगार की कोई कमी ना थी और उन्हें सैनिक के रूप में आसानी से रोजगार मिल जाता था।  
  • इसी काल में कुछ स्थानीय विशिष्ट लोगों ने तथा उत्तर भारत में मुगल साम्राज्य से संबंधित अधिकारियों ने भी इस अवसर का पूरा लाभ उठाते हुए पुरम और गंज जैसी शहरी बस्तियों के रूप में अपने पुराने शहरों का अपना विस्तार करना शुरु कर दिया।  
  • इस काल में राजनीतिक विकेंद्रीकरण केवल एक जैसा नहीं था, कुछ स्थानों पर नए सिरे से आर्थिक गतिविधियां बढ़ी, जबकि कुछ स्थानों पर राजनीतिक अनिश्चितता और पतन देखने को मिला।

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